Monday, October 24, 2011

एक भारतीय Vivek Agnihotri जी के शब्दोँ मेँ---)-
दीपावली की फ़ुटकरखरीदारी करने बाज़ार गया था। दीपक, हार-फ़ूल, खील-बताशे इत्यादि छोटा-मोटा सामान खरीदा… लेकिन कहीं भी मोलतोल करने की जरा भी इच्छा नहीं हुई। जिसने जितने भाव बताए वह देकर चला आया। कोशिश सिर्फ़इतनी की, कि अधिकतर सामान फ़ुटपाथ पर बैठे छोटे-छोटे बच्चोंसे खरीदा।बात यह है कि जब हम टाटा, बिरला, अंबानियोंके बनाए हुए प्रोडक्ट बिना मोलतोल के खरीद लेते हैं, बड़े होटलों में खाने का जो बिल बनता है हँसते हुए दे डालते हैं, अवैध पार्किंग में गुण्डों को बाइक पार्क करने के 5-10रुपये (कार के 20-30रुपए) बिना चूं-चपड़किय े दे देते हैं… तो फ़िर फ़ुटपाथपर दिन भर धूप में बैठे बच्चों से छोटी-छोटी वस्तुओं पर मोल तोल करना एक प्रकार की अमानवीयता है।सोचिये यदि कोई बच्चा या गरीब औरत दिन भर धूप में मेहनत करके, ट्रेफ़िक-सि पाही की झिड़कियाँखाते, शराबी बाप की गालियाँ खाते हुए मिट्टी के 500-800 दीपक या 1500-2000 रुपये के हार-फ़ूल बेच भी लेते है, तो वह हमसे कितना कमा लेंगे? निश्चित रूप से उतना तो नहीं, जितना एक बार मोबाइल रीचार्ज करवाने पर सुनील भारती मित्तल हमसे कमाता होगा… तब इन लोगों से क्यों इतना मोलभाव करना? आप भी ऐसा कर के देखिये मन को अच्छा लगेगा..... !!!


सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाये ँ
माँ लक्ष्मी की कृपा सब पर बनी रहे

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