Friday, September 16, 2011

नरेन्द्र मोदी जी का खुला पत्र - --

भाईयों एवम् बहनों, सादर प्रणाम ! कल, देश के सर्वोच्च न्यायालय ने, 2002 के गुजरात के सांप्रदायिक दंगो के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण फैसला दिया है। देश में सभी लोग अपने-अपने अनुसार, इस फैसले का अर्थघटन कर रहे हैं। राजनैतिक विश्लेषकों के लिये इस फैसले का अलग अर्थ है, तो कानून विशेषज्ञों के लिये अलग। सबका अपना-अपना दृष्टिकोंण है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से एक बात स्पष्ट हुई है। सन् 2002 के बाद व्यक्तिगत रुप से मेरे ऊपर एवम् गुजरात सरकार के ऊपर तरह-तरह के, मनगढंत झूठे आरोप लगते रहे है। उन सभी झूठे आरोपों के कारण जो कलुषित वातावरण था, उसका अंत आया है। लगभग 10 वर्षों सेगुजरात को एवं मुझे बदनाम करने का फैशन सा हो गयाथा। गुजरात के विकास की बात अथवा प्रगतिशीलता को सहन ना कर पाने वाले लोग गुजरात को बदनाम करने का एक भी अवसर जाने नहीं देते थे। http://www.narendramodi.com/

उधार की औकात पर लोकतंत्र सेलड़ाई, कुल मिलाकर दो बार - निरंजन परिहार

कुल मिलाकर दो बार। पहली बार एक लाख बहत्तर हजार डॉलर। और दूसरी बार एक लाख सत्तानवे हजार डॉलर। दोनों को जोड़कर देखें तो कुल मिलाकर तीन लाख उनहत्तर हजार डॉलर। एक डॉलर यानी आज की तारीख में हमारे हिंदुस्तान के 46 रुपए। 3 लाख 69 हजार डॉलर को भारतीय मुद्रा में आज के हिसाब से तब्दील करके देखें तो कुल एक करोड़ 69 लाख 74 हजार रुपए। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को चुनौती देनेवाले आंदोलनके बाद, आपकी जानकारी के लिए, कम से कम अब तो यह बताना जरूरी हो गया है कि ईमानदारी की प्रतिमा और आंदोलन के प्रज्ञापुरुष केरूप में अचानक उभर कर सामने आए अरविंद केजरीवालऔर मनीष सिसोदिया को ये करीब पौने चार लाख डॉलर तो अमरीका से ही सहायता के रूप में हासिल हुए हैं।
यह तो हुई अधिकारिक रूप से विदेशी सहायता की बात। पता नहीं,कहां कहां से कितना क्या क्या अनधिकृत रूप से मिला भी या नहीं मिला, यह अपन नहींजानते। मगर इतना जरूर जानते हैं कि हमारे देश की बहुत सारी सच में सामाजिक काम करनेवाली संस्थाओं को भी अपने ही देश में सहायता जुटाने में हजार किस्म की तकलीफें आती हैं। पर, ये दोनोंपट्ठे ठेट अमरीका से भी इतना सारा माल निकाल ले आते हैं,यह अपने आप में बहुत बड़ी बात आपको भी जरूर लगती होगी। मामला आईने की तरह साफ है कि इन दोनों को वे सारे रास्ते पता है कि कहां से घुसकर क्या क्या करके कितना माल बटोरा जा सकता है।
पौने चार लाख डॉलर कोई छोटी रकम नहीं होती। हमारे देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिनको अगर आपएक करोड़ का आंकड़ा लिखने को कहेंगे, तो उनको बहुत दिक्कत आएंगी। लिखने के पहले कई कई बार उंगलियों के पोर पर इकाई दहाई सैकड़ा हजार की गिनती करेंगे। फिर कहीं जाकर लिख पाएंगे। और इस सवाल का जवाब तो आप और हम भी एक झटके में शायद ही दे पाएं कि एक करोड़ में कितने शून्य लगते हैं। इससे भी आगे जाकर कुछ ज्यादा ही सुनना हो तो जरा यह सत्य भी सुन लीजिए कि हमारे देश की कुल एक सौ पच्चीस करोड़ प्रजा में से एक सौ चौबीस करोड़ पचास लाख से भी ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिनने एक साथइतने सारे रुपए इस जनम में तो कमसे कम कभी नहीं देखे होंगे। लेकिन केजरीवाल और सिसोदिया इतने सारे रुपयों के मालिक होकर भी रेल्वे स्टेशनों के प्लेटफार्म पर सो कर आप और हम जैसों की बराबरी में खड़ा होने का स्वांग रचकर सभी को सहजता से स्तब्ध कर लेते हैं।

उधार की औकात पर लोकतंत्र सेलड़ाई, कुल मिलाकर दो बार - निरंजन परिहार

इन दोनों की ‘कबीर’ नाम की एक संस्था है। बहुत सारे लोग तो शायद पहली बार ‘कबीर’ का नाम भी सुन रहेहोंगे। वैसे, कुछ दिन पहले तक ‘कबीर’ को खैर, कोई जानता भी नहीं था। केजरीवाल और सिसोदिया की यह ‘कबीर’ हमारे देश के भूखे नंगों के कल्याण का स्वांग करती है और उसके ये दोनों कर्ताधर्ता अमरीका से सहायता ले आते हैं।
अमरीका दुनिया का सेठ है। और इतना तो आप भी समझते ही है कि हरकोई गरीब पर दया देख कर उसकी सहायता करता है, अमीर की नहीं। इसी से समझ जाइए कि सिसोदिया और केजरीवाल हमारे महान भारत का कौनसा चेहरा अमरीका के सामने पेश करते होंगे। फोर्ड फाउंडेशन के भारतीय प्रतिनिधि स्टीवेन सोलनिक ने भी कहा है कि सिसोदिया और केजरीवाल के एनजीओ ‘कबीर’ को उनकी पहली सहयोग राशि 2005 में 1,72,000 डॉलर की थी। जबकि दूसरी बार 2008 में 1,97,000डॉलर दिए गए। जिसकी आखिरी किस्त 2010 में जारी की गई थी। अपने कबीर तो एक महान फकीर थे। पर उस पहुंचे हुए फकीर ने नाम पर अपनी गरीबी मिटाने का कमाल सिसोदिया और केजरीवाल ही कर सकते थे, और किया भी खूब।
यह वही अमरीका जो हमारे देश की संस्थाओं को सहायता देता है, और पाकिस्तान को भी पैसे ठेलकर हमारे खिलाफ जंग के लिए रह रहकर भड़काता रहा है। इसी अमरीका की आर्थिक सहायता पाकर पाकिस्तान हमारे बहादुर और देशभक्त सैनिकोंको अकसर गोलियों का निशाना भी बनाता रहा है। कोई आपके खिलाफ हमले करने के लिए आपके दुश्मन को गोला बारूद मुहैया कराए और दूसरी तरफ आपको भी रोटी के दो टुकड़े ड़ालकर जिंदा रखने की नौटंकी करती रहे, ऐसे किसी भी दोगले शख्स से आप कोई सहायता लेंगे, इसके लिए किसी भी सामान्य आदमी का भी दिल कभी गवाही नहीं देगा, यह आप भी जानते हैं। लेकिन केजरीवाल और सिसोदिया यह सब जानने के बावजूद अमरीका के सामने रोनी सूरत बनाकर अपने कटोरे में भीख भर ले आते हैं, यह गर्व करने लायक बात है या शर्म सेडूब मरने लायक, यहआप तय कीजिए।
और जरा इस सत्य कोभी जान लीजिए। गांधी और जेपी की बराबरी में पिछले दिनों अचानक प्रयासपूर्वक औरयोजनाबद्ध तरीकेसे खड़े कर दिए गएअन्ना हजारे की तेरह दिन की भूख के सहारे देश के आकाश में अचानक चमत्कार की तरह प्रकट हुए इन दो सितारों की चमक अमरीका से आई दया की भीख का कमाल है, यह किसी को पता नहीं था।

Wednesday, September 14, 2011

भारत में नरेंद्र मोदी सबसे कुशल शासक: अमेरिकी रिपोर्ट

भारत में नरेंद्र मोदी सबसे कुशल शासक: अमेरिकी रिपोर्ट
वॉशिंगटन। गुजरात दंगों के बाद मुख्‍यमंत् री नरेंद्र मोदी पर लगे दाग एक-एक कर साफ होते दिखाई दे रहे हैं। पहले सुप्रीम कोर्ट सेराहत और अब अमेरिकी कांग्रेस द्वारा उनकी जमकर तारीफें। अमेरिकी कांग्रेस अनुसंधान सेवाओं (सीआरएस) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के राज्‍योंकी बात करें तो नरेंद्र मोदी का शासन सबसे अच्‍छाऔर प्रभावशाली रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय अर्थव्‍यवस ्‍था को तेजी से आगे बढ़ाने में गुजरात की महत्‍वपूर् ण भूमिका रही है। कांग्रेस ने गुजरात के बाद बिहार की तारीफेंकरते हुए भाजपा को अगले चुनाव का प्रबल दावेदार भीबताया है।
सीआरएस रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात के बाद बिहार का नंबर आता है, जहां के मुख्‍यमंत् री नीतीश कुमार हैं।बिहार की शासन प्रणाली भी काफी बेहतरीन है। साथ ही यहां प्रशासनिक कुशलता भी देखी गई है। रिपोर्ट में लिखा है,"भारत में गुजरात,जहां के मुख्‍यमंत् री विवादों से घिरे हुए हैं, एक ऐसा राज्‍य है, जहां तेजी से विकास और प्रभावशाली शासन का देश की अर्थ व्‍यवस्‍था को मजबूत बनाने में काफी योगदान है।"
सीआरएस अमेरिकी कांग्रेस का एक अनुभाग है, जो समय-समय पर इस प्रकार की रिपोर्ट तैयार करता है। भारत पर बनी 94 पृष्‍ठों की यह रिपोर्ट 1 सितम्‍बर को जारीकी गई थी। रिपोर्ट में मोदीकी तारीफों के पुल बांधते हुए कहा गया कि 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित आरोपों के बावजूद मोदी ने प्रदेश में व्‍यापक स्‍तर परनिवेश को बढ़ावा दिया, बेहतरीन सड़कें बनवायीं, बिजली की समस्‍याको काफी हद तक खत्‍म किया और वार्षिक वृद्धि की दर 11 प्रतिशत तक पहुंचा दी।
गुजरात में जनरल मोटर्स और मिटसूबिशी जैसी तमाम कंपनियों नेनिवेश किया है। इस राज्‍य में देश की कुल पांच प्रतिशत जनसंख्‍या है और भारत का पांच प्रतिशत से अधिक एक्‍सपोर्ट यहीं से होता है।

बड़ी मेहनत से NGO वादियों ने अण्णाको "मोहरा" बनाकर, मीडिया का भरपूर उपयोग करके, अपने NGOs के नेटवर्क केजरिये एक खिचड़ी पकाई, उसमें मैगसेसे पुरस्कार विजेताओं वाला"तड़का" भी लगाया। दुकान खोलकर बैठेही थे, बोहनी भी नहीं हुई और दोतरफ़ा मुसीबत कासामना शुरु हो गया है… By suresh chiplunkar

आडवाणी द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ़ "रथयात्रा" की घोषणा से। यानी जो "माल" NGO गैंग ने अपनी"दुकान" पर सजाकर रखा था, वही माल एक"स्थापित दुकान" पर आ गया तो चुनौती मिलने की तगड़ी सम्भावना दिखने लगी। रथयात्रा की घोषणा भर से टीम अण्णा ऐसी बिफ़री है कि ऊलजलूल बयानों का दौर शुरु हो गया…मानोभ्रष्टाचार से लड़ना सिर्फ़ टीम अण्णा की "बपौती" हो। कल अण्णा साहब "टाइम्स नाऊ"पर फ़रमा रहे थे कि हम "ईमानदार" लोगों का साथ देंगे।
हम अण्णा जी से पूछना चाहते हैं कि - हवाला डायरी में नाम आने भर से इस्तीफ़ा देने और जब तक मामला नहीं सुलझता तब तक संसद न जाने की घोषणा और अमल करने वाले आडवाणीक्या "ईमानदार" नहीं हैं? फ़िर उनकी रथयात्रा कीघोषणा से इतना बिदकने की क्या जरुरत है? क्या उमा भारती पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप है? फ़िर टीम अण्णा ने उन्हें अपने मंच से क्यों धकियाया?
टीम अण्णा की"अधपकी खीर" में दूसरा चम्मच पड़ा है दलित संगठनों का…
दरअसल टीम अण्णा चाहती है कि 11 सदस्यीय लोकपाल समिति में"आरक्षण" ना हो…। अर्थात टीम अण्णाचाहती है कि जिसे"सिविल सोसायटी" मान्यता प्रदान करे, ऐसे व्यक्ति ही लोकपाल समिति के सदस्य बनें। जबकि ऐसा करना सम्भव नहीं है, क्योंकि ऐसी कोई भी सरकारी संस्थाजिसमें एक से अधिक पद हों वहाँ आरक्षण लागू तो होगा ही। टीम अण्णा के इस बयान का दलित संगठनों एवं कई क्षेत्रीयदलों के नेताओं ने विरोध किया है और कहा है कि 11 सदस्यीय जनलोकपाल टीम मेंSC भी होंगे, ST भी होंगे, पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय का एक-एक सदस्य भी होगा… यानी मैगसेसे पुरस्कार विजेताओं वाली शर्त की "गई भैंस पानी में…"।
तात्पर्य यह है कि "टीम अण्णा" की दुकान जमने से पहले ही उखड़ने का खतरा मंडराने लगाहै, इसीलिए कल केजरीवाल साहब"वन्देमातरम" के नारे पर सवाल पूछने वाले पत्रकार पर ही भड़क लिए। असल में टीम अण्णा चाहती है कि हर कोई उनसे"ईमानदारी" का सर्टीफ़िकेट लेकर ही रथयात्रा करे, उनके मंच पर चढ़े, उनसे पूछकर ही वन्देमातरम कहे… जबकि टीम अण्णा चाहे, तो अपनी मर्जी से संसद को गरियाए, एक लाइन से सभी नेताओं को बिकाऊ कहे… लेकिनकोई इन "स्वयंभू सिविलियनों" से सवाल न करे, कोई आलोचना न करे।
टीम अण्णा द्वारायह सारी कवायद इसलिये की जा रही है कि उन्होंने जो "ईमानदारी ब्राण्ड का तेल-साबुन" बनाया है, उसका मार्केट शेयर कोई और न हथिया सके…।

सावधान रहिये.... By Satish Chandra Mishra

12 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट केनिर्णय से नरेन्द्र मोदी विरोधियों के मुंह पर पड़े जोरदार थप्पड़ केपश्चात् कल अन्नाहजारे सक्रिय हो गया. IBN7 के राजदीपसरदेसाई के साथ बातचीत में उसने साफ़ कहा की कांग्रेस यदि भ्रष्टाचार में ग्रेजुएट है तो भाजपा ने पी.एच.डी.कर रखी है. निशाना 2014 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख कर साधा गया है. अन्ना ने यह भी कहा की वह किसी गैर कांग्रेसी-गैर भाजपा दल का समर्थन करेगा, अर्थात कांग्रेस-सरकार विरोधी मतों को देश भर में तितर-बितर कर मुख्य विपक्षी दलको हाशिये पर लाएगा. ऐसा करके वह किसकी राह आसान करेगा ये अनुमान लगाना कठिन नहीं है. इसी के साथ बाबा रामदेव से कोई सम्पर्क सम्बन्ध नहीं रखने,उनका कोई सहयोग-समर्थननहीं करने का एलान भी अन्ना ने किया लेकिन अन्नाने मनमोहन सिंह को कल भी सीधा-साधा इमानदार बताया तथा ये भी कहा की देश को आज इंदिरा गाँधी सरीखी"गरीबनवाज़" नेता की आवश्यकता है. ज़रा इसके निहितार्थ समझिये एवं गंभीरता से विचारकरिए की ये धूर्त अन्ना क्यों और कैसे यह भूल गया कि इंदिरा गाँधी ने ही आज से दशकों पहले भ्रष्टाचार को वैश्विक चलन बताते हुए इसको कोई मुद्दा माननेसे ही इनकार कर दिया था तथा भ्रष्टाचार का वहनिकृष्ट इतिहास रचा था जिसकी पतित पराकाष्ठा"आपातकाल" के रूप में फलीभूत हुई थी.इलाहाबाद उच्चन्यायालय ने इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी घोषित किया था. लेकिन ये कांग्रेसी दलाल देश की आँखों में धूल झोंकने की अपनी मुहिम पुनः प्रारम्भ कर चुकाहै. इस से सावधान रहिये और लोगों को सावधान करते रहिये........

सिन्दूर-बिंदी पर प्रतिबन्ध, अब कॉन्वेंट स्कूलों से निकलकर कारपोरेट तक पहुँचा…

जिनके बच्चे “सेंट” वाले कॉन्वेटों में पढ़ते हैं, वे जानते होंगे कि स्कूल के यूनिफ़ॉर्म के अलावा भी इन बच्चों पर कितनी तरह के प्रतिबन्धहोते हैं, जैसे कि “पवित्र”(?) कॉन्वेंट में पढ़ने वाला लड़का अपने माथे पर तिलक लगाकर नहीं आ सकता, लड़कियाँ बिन्दी-चूड़ी पहनना तो दूर, त्यौहारों पर मेहंदी भी लगाकर नहीं आ सकतीं। स्कूलों में बच्चों द्वारा अंग्रेजी में बातकरना तो अनिवार्यहै ही, बच्चों के माँ-बाप की अंग्रेजी भी जाँची जाती है… कुल मिलाकर तात्पर्य यह है कि “सहनशील” (यानी दब्बू और डरपोक) हिन्दुओं के बच्चों को “स्कूल के अनुशासन, नियमों एवं ड्रेसकोड” का हवाला देकर उनकी “जड़ों” से दूर करने और उन्हें “भूरे मानसिक गुलाम बनाने” के प्रयास ठेठ निचलेस्तर से ही प्रारम्भ हो जातेहैं। भारतीय संस्कृति और खासकर हिन्दुओं पर लगाए जा रहे इन “तालिबानी” प्रतिबन्धों को अक्सर हिन्दुओं द्वारा “स्कूल के अनुशासन और नियम” के नाम पर सह लिया जाता है। अव्वल तो कोई विरोध नहीं करता, क्योंकि एक सीमा तक मूर्ख और सेकुलर दिखने की चाहत वाली किस्म के हिन्दू इसके पक्ष में तर्क गढ़ने में माहिर हैं (उल्लेखनीय है कि ये वही लतखोर हिन्दू हैं, जिन्हें सरस्वती वन्दना भी साम्प्रदायिक लगती है और “सेकुलरिज़्म” की खातिर ये उसका भी त्याग कर सकते हैं)। यदि कोई इसका विरोध करता है तो या तो उसके बच्चे को स्कूल में परेशान किया जाता है, अथवा उसे स्कूल से ही चलता कर दिया जाता है।
वर्षों से चली आ रही इस हिन्दुओं की इस “सहनशीलता”(??) का फ़ायदा उठाकर इस “हिन्दू को गरियाओ, भारतीय संस्कृति को लतियाओ टाइप, सेकुलर-वामपंथी-कांग्रेसी अभियान” का अगला चरण अब कारपोरेट कम्पनी तक जा पहुँचा है। एक कम्पनी है “मुथूट फ़ाइनेंस एण्ड गोल्ड लोन कम्पनी” जिसकी शाखाएं अब पूरे भारत के वर्ग-2 श्रेणी के शहरों तक जा पहुँची हैं। यह कम्पनी सोना गिरवी रखकर उस कीमत का 80% पैसा कर्ज़ देती है (प्रकारांतर से कहें तो गरीबों और मध्यम वर्ग का खून चूसने वाली “साहूकारी
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