Saturday, September 24, 2011

बाल (बाढ़) गीत पापा, पापा, बाढ़ दिखाओ,

बाल (बाढ़)
गीत
पापा, पापा, बाढ़ दिखाओ,
हेलीकाप्टर में, हमें घुमाओ,
उपर से फेंकेंगे रोटी,
कोई मोटी, कोई छोटी,
शहर बन गये स्वीमिंग पूल,
हायS लगते हैं, कितने कूल!!!!
बहती भैंस, गाय और कुत्ता,
घर दिखते हैं, कुक्कुरमुत ्ता,
पापा हो गये मालामाल,
बाढ़देवी, आना हर साल,
पापा, पापा, बाढ़ दिखाओ,
हेलीकाप्टर में, हमें घुमाओ,
कक्षा पाँच के विद्यार्थी इस गीत
को विद्यालय के वार्षिक कार्यक्रम में
कोरस में भी गा सकते हैं.

Friday, September 23, 2011

महाशक्ति: ताजमहल में शिव का पाँचवा रूप अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजित है

ताजमहल में शिव का पाँचवा रूप अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजित है
श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक "Tajmahal is a Hindu Temple Palace" में 100 से भी अधिक प्रमाण और तर्को का हवाला देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। श्री पी.एन. ओक साहब को उस इतिहास कार के रूप मे जाना जाता है तो भारत के विकृत इतिहास को पुर्नोत्‍थान औरसही दिशा में ले जाने का किया है। मुगलो और अग्रेजो के समय मे जिस प्रकार भारत के इतिहास के साथ जिस प्रकार छेड़छाड की गई और आज वर्तमान तक मे की जा रही है, उसका विरोध और सही प्रस्तुतिकारण करने वाले प्रमुख इतिहासकारो में पुरूषोत्तम नाथ ओक साहब का नाम लिया जाता है। ओक साहब ने ताजमहल की भूमिका, इतिहास और पृष्‍ठभूमि से लेकर सभी का अध्‍ययन किया और छायाचित्रों छाया चित्रो के द्वारा उसे प्रमाणित करने का सार्थक प्रयास किया। श्री ओक के इन तथ्‍यो पर आ सरकार और प्रमुख विश्वविद्यालय आदि मौन जबकि इस विषय पर शोध किया जाना चाहिये और सही इतिहास से हमे अवगत करना चाहिये। किन्‍तुदुःख की बात तो यहहै कि आज तक उनकी किसी भी प्रकार से अधिकारिक जाँच नहीं हुई। यदि ताजमहल के शिव मंदिर होने में सच्चाई है तो भारतीयता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। आज भी हम जैसेविद्यार्थियों को झूठे इतिहास की शिक्षा देना स्वयं शिक्षा के लिये अपमान की बात है, क्‍योकि जिस इतिहास से हम सबक सीखने की बात कहते है यदि वह हीगलत हो, इससे बड़ाराष्‍ट्रीय शर्मऔर क्‍या हो सकता है ?
श्री पी.एन. ओक का दावा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजो महालय है। इस सम्बंध में उनके द्वारा दिये गये तर्कों का हिंदी रूपांतरण इस प्रकार हैं -
सर्व प्रथम ताजमहन के नाम के सम्‍बन्‍ध में ओक साहब ने कहा किनाम - (क्रम संख्‍या 1 से 8 तक)
1. शाहज़हां और यहां तक कि औरंगज़ेब के शासनकाल तक में भी कभी भी किसी शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना
http://mahashakti.bharatuday.in/2009/12/blog-post_19.html

आतंकवादी हमलोपर लिखी कविता....(इस कविता को सुनतेसुनते जाने कितने लोग रो पड़े.) दिल से महसूस करते हुएपढ़े...

इंसान को हैवानबना देते है लोग,
हद्द हर नीचता की जता देते है लोग
और जिन बच्चो को, अभी खबर ना थी, अपने नाम की यारो,
उन्हे जिहाद क्या होता है, सिखा देते है लोग......
रास्ता ए लहू अपना लेते है लोग,
लहू सस्ता हो जैसे नीर से, ऐसे बहा देते है लोग,
मिली क्या ख़ुशी उन्हे, देख कर लाशें,
क्यू अमनो-चैन जिंदा, दफ़ना देते है लोग
ये भाई ना रहा, ये बाप ना रहा
उसके सर पर उसकी माँ का, अब हाथ ना रहा तन्हा जो घूमताथा, चौराहो पर कभी
अब तन्हाई का भी उसकी, कोई साथ ना रहा
चल रहा था जो अभी, खुशी खुशी यहा
क्यू बेजान उस इंसान को, बना देते है लोग.....
सज-धज के चल रहीथी, जिसकी दुल्हन अभी,
पढ़ रहा था मुन्ना, ए,बी,सी,डी यही
गया था बाजार लेने, भाई सब्जियाँ
गूंद रही थी मा उसकी, आटा यही कही
चहकती बुल बुल,,,कोयल,,,उड़ते थे परिंदे..जहा
क्यू वीरान उस स्थान को बना देते है..
क्यू वीरान उस स्थान को बना देते है..
और जिन बच्चो को, अभी खबर ना थी, अपने नाम की यारो,
उन्हे जिहाद क्या होता है सिखा देते है लोग
उन्हे जिहाद क्या होता है सिखा देते है लोग....
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"

Wednesday, September 21, 2011

आज अन्ना आडवाणी की रथयात्रा से मतभेद रख रहे हैं कल बाबा रामदेव के आंदोलन से मतभेद थे

आज अन्ना आडवाणी की रथयात्रा से मतभेद रख रहे हैं
कल बाबा रामदेव के आंदोलन से मतभेद थे
शायद अन्ना भूल गए की यही भाजपा कंधे से कंधा मिलकर आंदोलन मेंउनके साथ थी
हर शहर का भाजपा कार्यकर्ता अन्ना के आंदोलन में उनके साथ गिरफ्तारिय ां दे रहा था
रामलीला मैदान में भाजपाई और संघ के स्वयं सेवक व्यवस्थाओं में जुटे हुए थे
हाँ अन्ना को यह जरूर याद है की भाजपा किसी भी प्रकार से कोई भी आंदोलन नहीं कर पाए जिससे की जनता की नजरों में उसकी एक अच्छी छवि बन पाए
अन्ना जी आडवानी जी राम मंदिर के लिए रथ यात्रा नहीं कर रहे हैं जो आप उसका विरोध कर रहे हैं .. वो भ्रष्टाचार के खिलाफ रथयात्रा कर रहे हैं .. जिसमे की आपको भी अपना समर्थन देनाचाहिए जैसे की भाजपा ने आपको दिया था
अन्ना कहते हैं की रथयात्रा नहींपदयात्रा करें
शायद अन्ना को यह मालूम नहीं की रथयात्रा पदयात्रा ही होतीहै
उसमे लोग पैदल पैदल ही चलते हैं
सिर्फ इस शहर से उस शहर जाने के लिए वाहन का प्रयोग होता है
सिर्फ इस बात से रथयात्रा का विरोध करना कितनातार्किक है अन्नाजी ?
भूख से लोगों के मरने और रथयात्राकरने को क्यों जोड़ रहे हैं
अगर ऐसी बात है तो भारत में किसी भी प्रकार का कार्यक्रम नहीं होना चाहिए
क्रिकेट का खेल भी बंद हो जाना चाहिये
क्यूंकि एक तरफ तो भारत में लोग भूख से मरते हैं और एक तरफ लोग क्रिकेट का आनंद लेते रहते हैं
सिनेमा भी बंद हो जाना चाहिए
कुछ दिनों बाद लगता है अन्ना यह कहेंगे की कांग्रेस को वोट दो
क्यूंकि भाजपा सिर्फ राजनेतिक फायदे उठाती है
अन्ना कह रहे हैं की “हम भूमि अधिग्रहण बिल और अन्य जरूरी मुद्दों को लेकर भी आंदोलन करेंगे।”
भूमि अधिग्रहण बिल का नाम इसलिए लिया गया कहा है क्यूंकि यह अभी हॉट मुद्दा है
अन्ना कहते हैं “आंदोलन के समय देश की जनता खडी़ हो गई। इसमें कोई संगठन नहीं था।”
शायद अन्ना को मालूम नहीं की भाजपा और आर एस एस जो की उनके आंदोलन को शहर शहर में चला रहे थे वे एक संगठन है।
अन्ना कहते हैं की “हम अपने साथ जोड़ने से पहले लोगों के चरित्र की भी जांच करेंगे। हमारी टीम इस बात की पूरी परख करेगी की जो लोग हमारे साथ जुड़ रहे हैं उनका ट्रैक रिकार्ड कैसा है।”
जैसे की उन्होंनेअग्निवेश की जांचकी थी
जैसे की शांति भूषण की जाँच कर रखी थी

Tuesday, September 20, 2011

टोपी पहनने से कौन सी सदभावनाआएगी ? (मोदी और टोपी की सियासतके बीच कुछ ध्यान देने योग्य बातें )

१-बीजेपी ने चुप्पी नहीं साधीहै। बीजेपी नेता शहनवाज खान ने साफ कहा है कि इस पर सियासत हो रही है।
२-मौलान साहब की बात कि टोपी न पहनकर मौदी ने उनके धर्म का अपमान किया है सरासर घटिया राजनीति है। ये कहकह उन सभी भारतीय लोगों का इमाम ने अपमान किया है जो टोपी नहीं पहनते, लेकिन मोदी का समर्थन भी नहीं करते।
३-पगड़ी हिंदू धर्म के हर अनुष्ठान में मुस्लिम टोपी की तरह अनिवार्य नहीं होती है। पगड़ी किसी महत्ता वाले काम को करने वाले और परिवार के मुखियाहोने के नाते पहनी जाती है।
४- कितने मुस्लिम"ऊँ" धारण करते हैं.....? ये टोपी की बात करना सिर्फ सियासत और बकवास है।
५ -किसी धर्म को मानना या नही मानना यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता है | लेकिन किसी धर्म से घॄणा करना अनुचित है | मोदी जी का 'सद्भावना' उपवास का यही निहर्थार्थ है | टोपी पहन कर मुस्लिम भाई अपनीइबादत करते है, मैं यह पुछना चाहता हूं कि कितने मुस्लिम भाई 'ऊं" चिन्ह को धारण करते है | फिरमोदी जी से ऐसा आग्रह क्यो | अपने धर्म मे अडिग है इस लिऐ टोपी स्वीकार नही की , किसी धर्म से धृणा नही है इस लिऐ शाल स्वीकार कर लिया | इसी बात से यह पता चलाता है वे एक स्पष्ट एवं दॄड मानसिकतावाले लोह पुरष है,दुसरो की तरह दोगले नही है, इनके मन मे सभी के लिऐ 'सद्भावना' है|ऐसे स्पष्टवादी लोग ही सब को साथ लेकर चलने मे सक्षम एवं सफल होते है | मोदी जी के हाथो में ही देश सूरक्षित एवंअखंडं रह सकता है |

टोपी पहनने से कौन सी सदभावनाआएगी ? (मोदी और टोपी की सियासतके बीच कुछ ध्यान देने योग्य बातें )

६-दिल्ली के शाही इमाम ने वंदे मातरम कहने से माना किया था | तो उसके खिलाफ किसीने कुछ नही कहा | लेकिन मोदि ने सिर्फ़ टोपी पहनने से मना किया तो मीडिया ने उसे हवा देदि | ये तो मोदि के खिलाफ हमेशा ग़लतप्रचार करते है| अगर हिम्मत है तो उस शाही इमाम के खिलाफ कुछ लिख के दिखाओ
७-वंदेमातरम और भारत माता की जय ना कहना धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद लेकिन टोपी ना पहनना कट्टरपंथ की निशानी ! वाह रेमेरे देश के महान सेक्यूलर लोग और निष्पक्ष मीडिया धन्य है आप
८- ये मौलवी सदभावना की बात मोदी को तिलक लगा के क्यों नहीं करते | क्या इससे उनका इस्लाम खतरेमें पड़ जायेगा ?
बहुत से धर्म गुरुओं ने उन्हे गंगा जल लाकर दिया. उसे उन्होने स्वीकार किया. अगर कोई उन्हे गोमास लाकार देता तो क्या उन्हे स्वीकार करना चाहिए था?
मोदी जी ना नौटंकी करते हैं , न उस पर विश्वास रखते हैं . देश के कई मुस्लिम रास्ट्र -पति/राज्यपाल/मुख्यमंत्री इस देश मे हुए क्या कभी उन्होने भगवावस्त्र धारण किए जो हिंदुओं का प्रतीक है, वह तो दूर की बात है गाँधी टोपी ग्रहणकिए क्या ? नरेंद्र मोदी जी का सीधा सरल जीवन, जो वोट के लिए कभी किसी को खुश नही किए, इस बात से साबित होता है | अच्छा लगा , यह कांग्रेसियों से या भारतीय जनता पार्टी के कुछ और नेताओं से भिन्न है. मुझे आज तक यह समझ मे नही आया की ये नेता वोट के लिए नौटकी क्यों करते है. विकास पर वोट लीजिए और विकास पर वोट देना भी चाहिए|

आईये जानिए शांति भूषण और प्रशांत भूषण को जो जन् लोकपाल बिल ली ड्राफ्टिंग कमिटी में है.....

Shanti Bhushan, India's Johnny-com e-lately Mahatma, is a "senior counsel" who has fought cases for these honest Indians in the past: > ShaukatGuru (a cousin of Afzal Guru, Shuakat was eventually givena 10 year sentence in relationto the 2001 Parliament attack case), > paragon of honesty Mr. H. D. Deve Gowda, > the supreme patriot Arundhati Roy (defended by Shanti Bhushan in a contempt of Supreme Court case). His son and protege Prashant Bhushan had this to say after 76 jawans were murdered by Naxals in Dantewada: "What did the government expect when they called it a war? Did they think that there would be no retaliatio n?" WillFidel Castro be the next PM of India???
क्या भाजपा चाहतीहै कि लाशों के ढेर पर कश्मीर को जबर्दस्ती बांधकर रखा जाए। अरुंधती ने कुछ भी गलत नहीं कहा है। जो उन्होंने कहा है उसे देश की सरकारें भी किसी न किसी रूप में मानती आई है। जब कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है तो जवाहर लाल नेहरू अपने घर के मामले को संयुक्त राष्ट्र में लेकरक्यों गए? अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीर मुद्देपर चर्चा की पहल क्यों की? उन्होंने मुशर्रफ को क्योंबुलाया? अगर अरुंधती पर देशद्रोह का मामला बनता है तो इन पूर्व प्रधानमंत् रियों पर भी इसी तरह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
प्रशांत भूषण, वरिष्ठ वकील
Supreme Court lawyer, Prashant Bhushan, who is part of the delegation , said: “We are discussing and consulting legal experts to file petition against the security forces involved in the killing of 118 civilians in 2010 unrest.”
“Our role is to facilitate a dialogue between Kashmir, India and Pakistan,” Bhushan said.
Swami Agnivesh said the summer unrest of 2010 has proved that “there was no hand of Pakistan and Lashker-e- Toiba in instigatin gany disturbanc e in Kashmir.”
“It has become clear during the summer unrest of 2010 that the Kashmiri movement was indigenous and expression of their aspiration s,” Agnivesh said. “It was in no way fuelled by LeT or Pakistan. The Indian civil society has realized it.”
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Monday, September 19, 2011

"टोपी" प्रकरण ने साबित कर दिया कि "सेकुलर" लोग गंदगी में लोटने वाले कीड़े हैं… By Suresh Chiplunkar

नरेन्द्र मोदी नेएक इमाम की दी हुई जालीदार टोपी स्वीकार नहीं की तो मानो देश एक गम्भीर समस्या सेजूझने लगा…। सरकारी भाण्ड चैनलों पर जो"सेकुलर कीड़े" बिलबिला रहे थे, शायद अब उन्हें संतुष्ट करने के लिए यानी हिन्दुओं को स्वयं को सेकुलर साबित करने के लिए बुर्का धारण करना होगा, क्रास पहनना होगा…।
१९९८ में उदयपुर में मशहूर सेकुलरएक्टर दिलीप कुमार (युसूफ खान) ने मेवाड़ी पगड़ीपहनने से इनकार कर दिया था. हालांकि वह किसी पंडित, पुजारी या हिन्दू संगठन ने नहीं पहनाई थी. लेकिन दिलीप साहबको उस पगड़ी में महाराणा प्रताप की देशभक्ति की बू आ रही थी, जिसनेअकबर को उसकी नानी याद दिला दी थी. और दिलीप कुमार ये कैसे सहन कर सकता है…
एक तरफ तो मुसलमान हिन्दू प्रतीकों को छोड़ो, "भारतीय प्रतीकों" से भी नफ़रत करते हैं, वहीं दूसरी तरफ मुसलमान और उनके सेकुलर चमचे पूरेदुनिया की 'मुसलमानी' करने पे तुले हुए हैं...इसे कहते हैंसेकुलरिज्म…। क्या अजमेर की दरगाह पर मत्था टेकने वाले घटियाअभिनेताओं/नेताओं की कौम, यह बताएगी कि वैष्णोदेवी या अमरनाथ के दर्शन करने जाने वालों में कितने मुस्लिम अभिनेता या नेता हैं?
न जाने कितनी फ़िल्मों में आपनेदेखा होगा कि"हिन्दू नामधारी हीरो-हीरोइन" भागकर शादी करने अथवा संकट आने पर चर्च जाते हैं या सीने पर क्रास बनाते हैं… कितनीबार आपने मुस्लिमया ईसाई नामधारी हीरो-हीरोइन को फ़िल्म में मन्दिरमें पूजा करते देखा है? शायद एक भी नहीं… क्योंकिसिर्फ़ हिन्दू पर ही यह साबित करने की जिम्मेदारी होती है कि वह"सेकुलर" है, बाकियों पर यह नियम लागू नहीं होता…।
"वन्देमातरम" और"सरस्वती वन्दना" का विरोध करने वालों पर मेहरबानी करते, दो कौड़ी की मानसिकता वाले सेकुलर, इस देश के सबसे गन्दे कीड़े हैं…

Sunday, September 18, 2011

हे प्रभु…!! टीम अण्णा और कांग्रेस को क्षमा कर देना, ये नहीं जानते कि… By Suresh Chiplunkar

नरेन्द्र मोदी केउपवास को लेकर कांग्रेस एवं सिविल सोसायटी वालों की बेचैनी देखते ही बनती है। छटपटा रहे हैं, फ़ड़फ़ड़ा रहे हैं, तिलमिला रहे हैं लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे, विभिन्न टीवी बहसों एवं बयानबाजियों में दिग्विजय सिंह, शकील अहमद, मनीष तिवारी, लालू यादव से लेकर छोटे भूषण और टीम अण्णा के अन्य सदस्यों के चेहरेदेखने लायक बन गये हैं। नरेन्द्र मोदी नेएक ही "मास्टर स्ट्रोक" में जहाँ इन लोगों को चारों खाने चित कर दिया है, वहीं दूसरी ओर जेटली-सुषमा जोड़ी को भी पार्श्व में धकेलकर राष्ट्रीय स्थिति प्राप्त कर ली है…
जिसने भी मोदी जी को यह "उपवास" वाला आयडिया दियाहै वह एक अच्छा मार्केटिंग मैनेजमेंट गुरु होगा…। इस उपवास की वजह से मीडिया को मजबूरन नरेन्द्र मोदी काचेहरा और उनके इंटरव्यू दिखाने पड़ रहे हैं, साथ हीउनके धुर विरोधियों जैसे वाघेला इत्यादि के हास्यास्पद बयानों के कारण मोदी की इमेज में और इज़ाफ़ा हो रहा है।
असल में टीम अण्णा के सदस्य एक "रोमाण्टिक आंदोलन" की तात्कालिक सफ़लता(?) से बौरा गये हैं, जबकि इनके जनलोकपाल आंदोलन के मुकाबले राम मन्दिर आंदोलन बहुत व्यापक और जनाधार वाला था। राम जन्मभूमि आंदोलन के सामने जनलोकपाल आंदोलन कुछ भी नहीं है, खासकर यह देखते हुए कि उस समय न तोफ़ेसबुक/ट्विटर थे, न तो आडवाणी कोमीडिया का"सकारात्मक कवरेज" मिला था, न ही "सत्ता प्रतिष्ठान का आशीर्वाद" उनके साथ था… इसके बावजूद गाँव-गाँवमें देश के कोने-खुदरे मे हर जगह राम मन्दिर आंदोलन की धमक मौजूद थी।
नरेन्द्र मोदी जैसे कई"वास्तविक नेता" मन्दिर आंदोलन कीउपज हैं, इसलिए सिविल सोसायटी वालों को "हर राजनैतिक मामले में" अपने "टाँग-अड़ाऊ" बयानों से बचना चाहिए। उन्हें एक मुफ़्त सलाह यह है कि, पहले नरेन्द्र मोदी जैसी स्वीकार्यता और लोकप्रियता तो हासिल कर लो, आठ-दससाल जनता के बीच जाकर जनाधार बनाओ, मेहनत करो… उसके पश्चात कुछ बोलना…।
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हे प्रभु इन्हें (टीम अण्णा और कांग्रेस को) क्षमा कर देना, ये नहीं जानते कि (नरेन्द्र मोदी का विरोध करके) ये क्या कर रहे हैं…!!!