Friday, January 20, 2012

हिंदुस्तान की गौरव गाथा:_
किसके कितने लाल सलोने सीमा पर छिन जाते हैं
गुरु गोविन्द जी बेटे दीवारों में चिन जाते हैं
झाँसी की रानी लड़कर रजधानी मिटवा देती है
पन्ना धाय वफ़ादारी में बेटा कटवा देती है
मंगल पांडे आजादी का परवाना हो जाता है
उधम डायर से बदले को दीवाना हो जाता है
घास-फूँस की रोटी खाकर राणा नहीं लड़े थे क्या
बन्दा बैरागी के सर पर हाथी नहीं चढ़े थे क्या
वीर हकीकत राय धर्म की खातिर मरते देखे हैं
ऋषि दधिची भी अपनी हड्डी अर्पण करते देखे हैं
हाड़ी रानी शीश काट कर थाली में रखदेती है
ये गाथा उनको सूरज की लाली में रख देती है
मैं अर्जुन को श्रीकृष्ण की गीता याद दिलाता हूँ
इसीलिए मै केवल अग्नीगंधा गीत सुनाता हूँ

1 comment:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...


भाई संजीव जी

बहुत सुंदर रचना के लिए आभार !
हरिओम पंवार जी की ही है अथवा आपने लिखी है ?


बहुत सुंदर भाव और सुंदर शब्दावली है !

शुभकामनाओं सहित…