Sunday, April 1, 2012

वे बनाते हैं हर रोज, हम बनते हैं हर रोज 1 Apr 2012, 0900 hrs IST,नवभारत टाइम्स

... लो एक और अप्रैल फूल आ गया। एक और इम्पोटेर्ड पर्व, जिसमें जितना आपने दूसरों को मूरख बनाया, उतना पुण्य कमाया। और जब पुण्य कमाने की बारी आती है, तब अपना मुल्क कितना सेंसिटिव हो जाता है, यह तो हम सबने देखा है। यही कारण है कि अपने देश में अप्रैल फूल बनाने का फंडा थोड़ा अलग हो जाता है। हर दिन, हर वक्त अप्रैल फूल बनाने का काम होता है और हमारे चंद हुक्मरान खूब पुण्य कमाते हैं। और हम हैं कि हर बार बन भी जाते हैं मूर्ख। नरेंद्र नाथ पेश कर रहे हैं ऐसी ही कुछ मिसालें, जिन्हें पढ़कर आपको तय करना है कि इनमें से आप किन बातों पर मूर्ख बने हैं : 

28 रुपए से ज्यादा कमाए तो गरीब नहीं 
अब इस पर क्या बोलें! एकदम जोर का अप्रैल फूल सरकार ने मार्च में ही बना दिया, गरीबी की नई परिभाषा देकर। अब देखने वाली बात यह है कि सरकार पूरे देश को क्रीमी लेयर में आ जाने से संबंधित रिपोर्ट कब जारी करती है। वैसे जान लें कि रोजाना 28 रुपए से कम कमानेवाले भी देश में करीब 30 करोड़ लोग हैं। चलिए, बाकी 80 करोड़ लोगों को कम-से-कम गरीब न होने का सुकून तो होगा। 

हर हाथ को काम, हर किसी को छत 
सरकार ने न जाने कितनी बार बेरोजगारी दूर कराने के लिए तरह-तरह के सब्जबाग दिखाए। लेकिन बेरोजगारी की हालत देश में कैसी है, यह कोई यूपी के नए सीएम अखिलेश यादव से पूछे। बेरोजगारों को भत्ता देने की क्या कही, बेरोजगारों की आंधी आ गई। वहीं खुद केंद्र सरकार की सुनिए कि इस देश में टॉयलेट से ज्यादा मोबाइल फोन हैं। मजेदार है कि लोगों को भी टॉयलेट से ज्यादा जरूरी मोबाइल फोन लगता है। बहरहाल, टॉयलेट हो-न-हो, हाथ में काम हो-न-हो, मोबाइल तो है ही। गौर फरमाइए जनाब, पूरे देश में 30 करोड़ लोगों के पास कोई काम नहीं है। 35 करोड़ लोगों से ज्यादा के सिर पर छत नहीं है। वैसे, आप भी किसी को यह जानकारी देने के लिए अपना मोबाइल उठा सकते हैं। 



जगमग होगा देश का हर कोना 
लेकिन हकीकत है कि सरकार को अंधेरा कायम रहे डॉयलॉग ज्यादा पसंद है। ताजा रिपोर्ट बताती है 14 करोड़ लोग अभी भी बिजली से महरूम हैं। इनमें 87 फीसदी लोग गांवों में हैं। 5 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास अवैध बिजली कनेक्शन है। लीगल बिजली कनेक्शन पाने के लिए लगता है अपनी अर्जी भगवान से ही कनेक्ट करनी होगी। 

मुनिया पढ़ेगी, बढ़ेगा देश 
लेकिन हकीकत यह कि लड़कियों के न पढ़ने की तादाद में खास कमी नहीं है। यूनिसेफ ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जाहिर की। सरकारी कोशिशों की ईमानदारी यह कि इस साल बालिका शिक्षा पर 65 फीसदी पैसा खर्च करने का वक्त दर्जनों राज्य सरकारों को नहीं मिला। लाख कोशिश के बाद भी महिलाओं की साक्षरता दर 65 फीसदी तक पहुंच पाई है। 6 से 14 साल के बीच की 80 लाख लड़कियां हर साल पढ़ाई बीच में छोड़ देती हैं। क्या अब भी कहना होगा, न आना इस देश लाडो! 

महंगाई से निजात मिलेगी 
महंगाई कितनी गिरी पता नहीं, लेकिन लगता है कि यह मुहावरा जल्द ही सही साबित हो जाएगा कि लोग बोरी भरकर पैसे ले जाएंगे और खरीदारी कर सामान थैले में लाएंगे। महंगाई दर वैसे बढ़ रही है, जैसे 20-20 क्रिकेट में रन बनते हैं। और सरकार की तो पूरी तैयारी है कि अप्रैल फूल के दिन पेट्रोल की कीमत बढ़ाकर एक बार फिर लोगों का मजाक बनाया जाए। 

वोट बैंक की राजनीति में भरोसा नहीं 
लेकिन जब वोट की बारी होती है तो इतने बैंक (वोट बैंक) खुल जाते हैं कि उनका हिसाब-किताब रखना मुश्किल हो जाता है। वोट बैंक की तरह काश अपने देश के बैंक भी फल-फूल रहे होते। 

भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकना है 
अब क्या कहें इस पर। जिस कदर एक के बाद एक घोटाले हुए, उससे तो यही लगता है कि वे भ्रष्टाचार की जड़ को मजबूत करने में लगे रहे और हमें अप्रैल फूल बनाते रहे कि इसे जड़ से उखाड़ रहे हैं। महज एक साल के अंदर देश में जितने घोटाले हुए हैं, उनके बारे में कहा जाता है कि अगर उनकी रकम को मिला लिया जाए तो लंबे समय तक देश का खर्च निकलता रहेगा। 

स्वस्थ समाज, बेहतर समाज का वादा 
स्वस्थ समाज का वादा हर सरकार ने किया। लेकिन देश में करोड़ों लोगों को मर्ज दूर करने के लिए बेसिक इलाज भी नसीब नहीं। इलाज के लिए डॉक्टर नहीं, मर्ज के लिए दवा नहीं। रिपोर्ट बताती हैं कि देश में 9 करोड़ लोगों के पास एकदम बुनियादी चिकित्सा व्यवस्था नहीं है और हर साल 12 लाख लोग बिना इलाज के मौत के मुंह में चले जाते हैं। 

स्टारडम में मेरा यकीन नहीं 
मेरी अगली फिल्म लीक से हटकर है। मुझे स्टारडम से कोई लेना-देना नहीं। आपने यह बात हर बॉलिवुड एक्टर के मुंह से सुनी होगी। लेकिन बिना स्टारडम के स्टार कैसा और स्टार नहीं, पूछ कहां। अरे तो भई, झूठ बोलने या दूसरों को मूर्ख बनाने की जरूरत क्या है। सच को स्वीकार करो और चौड़े हो जाओ। फिर सिक्स पैक ऐब्स के लिए ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी होगी। ही...ही...ही..। 

सिर्फ देश के लिए खेलना मकसद 
आपने अक्सर हर खिलाड़ी के मुंह से सुना होगा- रेकॉर्ड बनाना कभी मेरे जेहन में नहीं होता। मेरा मकसद सिर्फ देश के लिए खेलना है। रेकॉर्ड तो बनते-बिगड़ते रहते हैं। अरे बंधु, जब यही सच है तो अपने रेकॉर्ड से चिपके रहने और दूसरे के रेकॉर्ड को मौका लगते ही तोड़ने की जुगत में क्यों लगे रहते हैं। आखिर खेल को खेल की तरह खेलना चाहिए।

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