Friday, January 27, 2012

ऐ मेरे वतन के लोगो! ज़रा आँख मेंभरलो पानी!
जो शहीद हुए हैं उनकी! ज़रा याद करोक़ुरबानी |प|
जब घायल हुआ हिमालय! खतरे में पड़ी आज़ादी!
जब तक थी साँस लड़ेवो! फिर अपनी लाश बिछादी
संगीन पे धर कर माथा! सो गये अमर बलिदानी!
... जो शहीद हुए हैं उनकी! ज़रा याद करोक़ुरबानी |१|
जब देश में थी दीवाली! वो खेल रहेथे होली!
जब हम बैठे थे घरोंमें! वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो अपने! थी धन्य वो उनकी जवानी!
जो शहीद हुए हैं उनकी! ज़रा याद करोक़ुरबानी |२|
कोई सिख कोई जाट मराठा -२! कोई गुरखा कोई मदरासी -२!
सरहद पे मरनेवाला! हर वीर था भारतवासी
जो ख़ून गिरा पर्वत पर! वो ख़ून था हिंदुस्तानी!
जो शहीद हुए हैं उनकी! ज़रा याद करोक़ुरबानी |३|
थी खून से लथपथ काया! फिर भी बन्दूक उठाके!
दस-दस को एक ने मारा! फिर गिर गये होश गँवा के
जब अन्त समय आया तो! कह गये के अब मरते हैं!
ख़ुश रहना देश के प्यारो -२! अब हम तो सफ़र करते हैं -२
क्या लोग थे वो दीवाने! क्या लोग थे वो अभिमानी!
जो शहीद हुए हैं उनकी! ज़रा याद करोक़ुरबानी |४|
तुम भूल न जाओ उनको! इसलिये कही ये कहानी!
जो शहीद हुए हैं उनकी! ज़रा याद करोक़ुरबानी
जय हिन्द।

Thursday, January 26, 2012

एक अगीत....गणतन्त् र दिवस पर...
वे राष्ट्र गान गाकर
जनता को देश पर
मर मिटने की, कसम दिलाकर ;
बैठ गये लक्ज़री कार में जाकर ।
टोपी पकडाई पी ए को,
अगले वर्ष के लिये रखे धुलाकर ॥
Ho gayi peer parbat si pighalanichahiye,
Is himalay se koi Gangaa nikalani chaahiye
Aaj ye deewar pardo ki tarah hilane lagi,
Shart lekin thi ki buniyaad hilani chahiye
Sirf hungama khada karna mera maksad nahi,
Meri koshish hai ki ye surat badalani chahiye
Mere seene me nahi to tere seene me sahi,
Ho kahi bhi aag magar aag jalni chahiye

Monday, January 23, 2012

Netaji

माँ भारती के यशस्वी पुत्र नेताजी सुभाष चन्द्र बोस( २३जन,१८९७- १६ सितम्बर'१९८५) को शत-१ नमन! आज़ादी की लड़ाई का वो महानायक जिसका स्वर्णिम अध्याय इतिहास के पन्नो में कही खो गया. हे माँ भारती तू ऐसे क्रांतिकारी पुत्रों को बार-२ इस धरती पे जन्म दे. नेताजी सुभाष अमर रहे! जय माँ भारती!
अंग्रेज़ों को भारत से खदेड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन पर आइए करें उन्हें नमन।
खूनी हस्‍ताक्षर!
वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है,
वह खून नहीं, पानी है!
उस दिन लोगों ने सही-सही
खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
मॉंगी उनसे कुरबानी थी।
बोले, "स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में,
लेकिन आगे मरना होगा।
आज़ादी के चरणें में जो,
जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
फूलों से गूँथी जाएगी।
आजादी का संग्राम कहीं
पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है"
यूँ कहते-कहते वक्ता की
आंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा
दमकी उनकी रक्तिम काया!
आजानु-बाहु ऊँची करके,
वे बोले, "रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की
आज़ादी तुम मुझसे लेना।"
हो गई सभा में उथल-पुथल,
सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के
कोसों तक छाए जाते थे।
“हम देंगे-देंगे खून”
शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े
तैयार दिखाई देते थे।
बोले सुभाष, "इस तरह नहीं,
बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं
आकर हस्ताक्षर करता है?
इसको भरनेवाले जन को
सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीव न
माता को अर्पण करना है।
पर यह साधारण पत्र नहीं,
आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!
वह आगे आए जिसके तनमें
खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को
हिंदुस्तानी कहताहो!
वह आगे आए, जो इस पर
खूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए
जो इसको हँसकर लेता हो!"
सारी जनता हुंकार उठी-
हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो,
हम अपना रक्त चढाते हैं!
साहस से बढ़े युबक उस दिन,
देखा, बढ़ते ही आतेथे!
चाकू-छुरी कटारियों से,
वे अपना रक्त गिराते थे!
फिर उस रक्त की स्याही में,
वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने पर
हस्ताक्षर करते जाते थे!
उस दिन तारों ने देखा था
हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने
ख़ूँ से अपना इतिहास नया।
--गोपालप्रसाद व्यास