Wednesday, August 15, 2012

आज़ादी या फिर सिर्फ सत्ता का हस्तांतरण

14 अगस्त 1947 की रात्रि को जो कुछ हुआ
था वो वास्तव में स्वतंत्रता नहीं आई थी अपितु
ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था पंडित नेहरु और
लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में.Transfer of Power और
Independence ये दो अलग विषय हैं.स्वतंत्रता और
सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग विषय हैं एवं
सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? आप देखते होंगे क़ि एक
पार्टी की सरकार है, वो चुनाव में पराजित जाये,
दूसरी पार्टी की सरकार आती है
तो दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण
करता है, तो वो शपथ ग्रहण करने के तुरंत पश्चात एक
रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है, आप लोगों में से बहुतों ने
देखा होगा, तो जिस रजिस्टर पर आने
वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता है, उसी रजिस्टर
को 'ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर' की बुक कहते हैं तथा उस पर
हस्ताक्षर के पश्चात पुराना प्रधानमन्त्री नए
प्रधानमन्त्री को सत्ता सौंप देता है एवं
पुराना प्रधानमंत्री निकल कर बाहर
चला जाता है.यही नाटक हुआ था 14 अगस्त 1947
की रात्रि को 12 बजे.लार्ड माउन्ट बेटन ने
अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थी, और हमने कह
दिया कि स्वराज्य आ गया | कैसा स्वराज्य और काहे
का स्वराज्य ? अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का अर्थ
क्या था ? और हमारे लिए स्वराज्य का आशय क्या था ? ये
भी समझ लीजिये | अंग्रेज कहते थे क़ि हमने स्वराज्य दिया,
अर्थात अंग्रेजों ने अपना राज आपको सौंपा है जिससे
कि आप लोग कुछ दिन इसे चला लो जब
आवश्यकता पड़ेगी तो हम पुनः आ जायेंगे | ये
अंग्रेजो की व्याख्या (interpretation) थी एवं भारतीय
लोगों की व्याख्या क्या थी कि हमने स्वराज्य ले
लिया तथा इस संधि के अनुसार ही भारत के दो टुकड़े किये
गए एवं भारत और पाकिस्तान नामक दो Dominion
States बनाये गए हैं | ये Dominion State का अर्थ
हिंदी में होता है एक बड़े राज्य के अधीन एक छोटा राज्य,
ये शाब्दिक अर्थ है और भारत के सन्दर्भ में
इसका वास्तविक अर्थ भी यही है. अंग्रेजी में इसका एक
अर्थ है "One of the self-governing nations in
the British Commonwealth"
तथा दूसरा "Dominance or power through legal
authority "| Dominion State और Independent
Nation में जमीन आसमान का अंतर होता है | मतलब
सीधा है क़ि हम (भारत और पाकिस्तान) आज भी अंग्रेजों के
अधीन ही हैं. दुःख तो ये होता है कि उस समय के सत्ता के
लालची लोगों ने बिना सोचे समझे अथवा आप कह सकते हैं
क़ि पूरी मानसिक जागृत अवस्था में इस संधि को मान
लिया अथवा कहें सब कुछ समझ कर ये सब स्वीकार कर
लिया एवं ये जो तथाकथित स्वतंत्रता प्राप्त हुई
इसका कानून अंग्रेजों के संसद में बनाया गया और
इसका नाम रखा गया Indian Independence Act
अर्थात भारत के स्वतंत्रता का कानून तथा ऐसे कपट पूर्ण
और धूर्तता से यदि इस देश
को स्वतंत्रता मिली हो तो वो स्वतंत्रता, स्वतंत्रता है
कहाँ ? और इसीलिए गाँधी जी (महात्मा गाँधी) 14
अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे.
वो नोआखाली में थे और कोंग्रेस के बड़े
नेता गाँधी जी को बुलाने के लिए गए थेकि बापू चलिए
आप.गाँधी जी ने मना कर दिया था. क्यों ? गाँधी जी कहते
थे कि मै मानता नहीं कि कोई स्वतंत्रता मिल रही है एवं
गाँधी जी ने स्पष्ट कह दिया था कि ये स्वतंत्रता नहीं आ
रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है और
गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी |
उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये
कहाकि मैं भारत के उन करोड़ों लोगों को ये सन्देश
देना चाहता हूँ कि ये जो तथाकथित स्वतंत्रता (So
Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया | ये
सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस
कर लाये है | मै मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई
है | और 14 अगस्त 1947 की रात
को गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे नोआखाली में थे | माने
भारत की राजनीति का सबसे बड़ा पुरोधा जिसने
हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई की नीव
रखी हो वो आदमी 14 अगस्त 1947 की रात
को दिल्ली में मौजूद नहीं था | क्यों ? इसका अर्थ है
कि गाँधी जी इससे सहमत नहीं थे | (नोआखाली के दंगे
तो एक बहाना था वास्तव में बात तो ये
सत्ता का हस्तांतरण ही थी) और 14 अगस्त 1947
की रात्रि को जो कुछ हुआ है वो स्वतंत्रता नहीं आई ....
ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट लागू हुआ था

ये आजादी है?????

ऐसा क्या हुआ था 14 अगस्त की रात को जो अगले दिन 15 अगस्त को हमे आजादी मिल गई ????

क्यूँ गांधी जी ने कहा इस काँग्रेस को खत्म कर दो वरना ये देश को अंग्रेज़ो से ज्यादा लूटेगी !

क्या है किताबों मे पढ़ाये जाने वाले आपके चाचा नेहरू की कहानी ?????

गांधी के जीवन की सबसे बड़ी गलती क्या थी ???

क्या भारत independent nation है ?????

आज भी englaind की महारानी बिना वीजा के अपने मर्जी मे भारत मे कैसे आ जाती है ????

भारत का सविधान कहता है 21 तोपों की सलामी के राष्ट्रपति को दी जाती है ! लेकिन englaind की महारानी जब भारत आती है उसे भी दी जाती है ऐसा क्यूँ ?????

नेहरू इस देश का प्रधानमंत्री कैसे बन गया कोई और क्यूँ नहीं बना ????

ऐसे बहुत से सवाल जिसका जवाब श्याद आपके पास नहीं होगा !! जानने के लिए सिर्फ एक बार यह विडियो देखो और शेयर करे !! आपका दिमाग चकरा जाएगा !

http://www.youtube.com/watch?v=tx509AAwTU0

चंद्रशेखर आज़ाद की मौत से जुडी फ़ाइल

चंद्रशेखर आज़ाद की मौत से जुडी फ़ाइल आज भी लखनऊ के सीआइडी ऑफिस १- गोखले मार्ग मे रखी है .. उस फ़ाइल को नेहरु ने सार्वजनिक करने से मना कर दिया .. इतना ही नही नेहरु ने यूपी के प्रथम मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त को उस फ़ाइल को नष्ट करने का आदेश दिया था .. लेकिन चूँकि पन्त जी खुद एक महान क्रांतिकारी रहे थे इसलिए उन्होंने नेहरु को झूठी सुचना दी की उस फ़ाइल को नष्ट कर दिया गया है ..

उस फ़ाइल मे इलाहब...ाद के तत्कालीन पुलिस सुपरिटेंडेंट मिस्टर नॉट वावर के बयान दर्ज है जिसने अगुवाई मे ही पुलिस ने अल्फ्रेड पार्क मे बैठे आजाद को घेर लिया था और एक भीषण गोलीबारी के बाद आज़ाद शहीद हुए |
...
नॉट वावर ने अपने बयान मे कहा है कि " मै खाना खा रहा था तभी नेहरु का एक संदेशवाहक आया उसने कहा कि नेहरु जी ने एक संदेश दिया है कि आपका शिकार अल्फ्रेड पार्क मे है और तीन बजे तक रहेगा .. मै कुछ समझा नही फिर मैं तुरंत आनंद भवन भागा और नेहरु ने बताया कि अभी आज़ाद अपने साथियो के साथ आया था वो रूस भागने के लिए बारह सौ रूपये मांग रहा था मैंने उसे अल्फ्रेड पार्क मे बैठने को कहा है "

फिर मै बिना देरी किये पुलिस बल लेकर अल्फ्रेड पार्क को चारो ओर घेर लिया और आजाद को आत्मसमर्पण करने को कहा लेकिन उसने अपना माउजर निकालकर हमारे एक इंस्पेक्टर को मार दिया फिर मैंने भी गोली चलाने का हुकम दिया .. पांच गोली से आजाद ने हमारे पांच लोगो को मारा फिर छठी गोली अपने कनपटी पर मार दी |"

27 फरवरी 1931, सुबह आजाद नेहरु से आनंद भवन में उनसे भगत सिंह की फांसी की सजा को उम्र केद में बदलवाने के लिए मिलने गये, क्यों की वायसराय लार्ड इरविन से नेहरु के अच्छे ''सम्बन्ध'' थे, पर नेहरु ने आजाद की बात नही मानी,दोनों में आपस में तीखी बहस हुयी, और नेहरु ने तुरंत आजाद को आनंद भवन से निकल जाने को कहा । आनंद भवन से निकल कर आजाद सीधे अपनी साइकिल से अल्फ्रेड पार्क गये । इसी पार्क में नाट बाबर के साथ मुठभेड़ में वो शहीद हुए थे ।अब आप अंदाजा लगा लीजिये की उनकी मुखबरी किसने की ? आजाद के लाहोर में होने की जानकारी सिर्फ नेहरु को थी । अंग्रेजो को उनके बारे में जानकारी किसने दी ? जिसे अंग्रेज शासन इतने सालो तक पकड़ नही सका,तलाश नही सका था, उसे अंग्रेजो ने 40 मिनट में तलाश कर, अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया । वो भी पूरी पुलिस फ़ोर्स और तेयारी के साथ ?

आज़ाद पहले कानपूर गणेश शंकर विद्यार्थी जी के पास गए फिर वहाँ तय हुआ की स्टालिन की मदद ली जाये क्योकि स्टालिन ने खुद ही आजाद को रूस बुलाया था . सभी साथियो को रूस जाने के लिए बारह सौ रूपये की जरूरत थी .जो उनके पास नही था इसलिए आजाद ने प्रस्ताव रखा कि क्यों न नेहरु से पैसे माँगा जाये .लेकिन इस प्रस्ताव का सभी ने विरोध किया और कहा कि नेहरु तो अंग्रेजो का दलाल है लेकिन आजाद ने कहा कुछ भी हो आखिर उसके सीने मे भी तो एक भारतीय दिल है वो मना नही करेगा |

फिर आज़ाद अकेले ही कानपूर से इलाहबाद रवाना हो गए और आनंद भवन गए उनको सामने देखकर नेहरु चौक उठा | आजाद ने उसे बताया कि हम सब स्टालिन के पास रूस जाना चाहते है क्योकि उन्होंने हमे बुलाया है और मदद करने का प्रस्ताव भेजा है .पहले तो नेहरु काफी गुस्सा हुआ फिर तुरंत ही मान गया और कहा कि तुम अल्फ्रेड पार्क बैठो मेरा आदमी तीन बजे तुम्हे वहाँ ही पैसे दे देगा |