Saturday, September 29, 2012

इस दौर के बच्चे मुझे अच्छे नहीं लगते....


.इस दौर के बच्चे मुझे अच्छे नहीं लगते....
क्युकी उन्हें रिलायंस के शेयर के रेट पता है
 
मगर आटे दाल के भाव नहीं पता.
.
उन्हें सात समंदर दूर रहने वाले फ्रेंड के बारे में सब पता है...
मगर पास वाले कमरे में बूढी दादी की बीमारी के बारे में कुछ नहीं पता...
 

उन्हें बालीवुड के भांडों के खानदान के बारे में पता है
 
मगर अपनी गोत्र के बारे में कुछ नहीं पता....
 

उन्हें यह पता है की नियाग्रा फाल्स कहा है..
 
मगर लुप्त हुई सरस्वती नदी के बारे में कुछ नहीं पता....
 

उन्हें जीसस और मरायक की पूरी स्टोरी याद है ..
 
मगर महाभारत और रामायण के बारे में कुछ नहीं पता...
 

उन्हेँ शेक्सपियर चेतन भगत के बारे मेँ पता है लेकिन प्रेमचंद के बारे मेँ नहीँ
 

जब दुकानदार कहता है ये फॉरिन ब्राँड है तो वो खुश होकर खरीद लेते हैँ लेकिन स्वदेशी उत्पाद को वो तुच्छ समझते हैँ
 

उन्हेँ ब्रैड पिट एँजेलिना जॉली सेलेना गोमेज के बारे मेँ पता है लेकिन राजीव दीक्षित कौन है ये नहीँ पता
 

अमेरिका मेँ 
Iphone 5 कब लाँच होगा वो जानते हैँ लेकिन देश मेँ क्या हो रहा वो नहीँ जानते

एक था टाईगर का वीकली कलैक्शन उन्हेँ पता है लेकिन देश के गरीब की आय से अनभिज्ञ है
 

करीना कैटरीना का बर्थडे याद रखते हैँ वो लेकिन आजाद भगत सुभाष को भूल जाते हैँ
 

क्युकी वे बच्चे अपने माँ बाप के मनोरंजन का नतीजा है...
 
अर्जुन और द्रोपदी का अभिमन्यु नहीं..........

एफ़डीआई के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी की लूट ::


 प्लासी के युद्ध से 7 वर्ष पूर्व 1750 में भारत में विश्व का 24.5% विनिर्माण (Manufacturing) होता था जबकि यू॰के॰ में केवल 1.9% मतलब विश्व बाजार में उप्लब्ध हर 4 में से 1 वस्तु भारत में निर्मित होती थी।

 सन् 1900 आते आते भारत में विश्व का केवल 1.7% विनिर्माण उत्पाद रह गया और ब्रिटेन में यह बढ़कर 18.5% हो गया था।

 स्वदेशी अपनाओ, देश बचाओ !

Thursday, September 27, 2012

देश को १० पैसे प्रति यूनिट के हिसाब से भी मिल सकती है बिजली ..


10  पैसे किलो कोयला बेचने वाले शातिर 10 पैसा यूनिट बिजली भी बना सकते हैं लेकिन यह विदेशी ईसाइयो के लिए घातक होगा......इसीलिये कांग्रेस ने हर क्षेत्र के अनुसंधान को भी बंद करा रखा है.....

सौरी ऊर्जा से बिजली बनाने में कुछ भी नहीं करना होता है...आप खाना खाने को भूल सकते हैं लेकिन आपका पैनल बिजली बनाना नहीं भूलेगा..

सोलर पैनल की 25 साल की गारंटी होती है और 40साल तक की वारंटी यानी यह काम करेगा लेकिन 80% क्षमता पर....आंधी में टूट नहीं गया तो 40 साल तक बिजली देगा..


भारत में उपलब्ध तकनीक और संसाधनों का प्रयोग किया जाये तो यह पैंनल 20/- प्रति वाट के हिसाब से बाजार में सरकार लाकर हर घर को 11 घंटे अनिवार्य बिजली दे सकती है क्योकि पैनल उष्मा से नहीं, प्रकाश से काम करते हैं.

यही 1000 वाट का पैनल ११ घंटे काम करे तो ११ Unit बिजली बनेगी और यह बिना रुके 365 दिन और 30 साल (औसत) काम करेगा. अपने जीवन काल में बिना कुछ खर्च किये 

11 x 365 x30 years x @Rs.3.00 Unit =Rs.3,61,350/- की बिजली मिलेगी..

1000 वाट पैनल लगाने पर 1000 x 20 = 20,000/-  रुपये खर्च होंगे.

30 साल में 30 x 365 x 11 यूनिट बिजली बनेगी यानी 120450 यूनिट 

20,000/- के खर्चे को 120450 यूनिट दे भाग दीजिए तो यह 16.60 पैसे प्रति यूनिट आएगा और आप अपने पॉवर हाउस स्वयं मालिक होंगे और रोज गारंटेड बिजली मिलेगी..  अब इसी खर्चे में सब जोडते जाइए—लेकिन यह 1.00 रुपये कभी भी नहीं हो पायेगा.
चीन इस समय सोलर पैनलो का बेतहाशा उत्पादन कर रहा है और उसका खर्च 25/- रुपये वाट पड रहा है लेकिन भारी मात्र में उत्पादन से और ऊर्जा के लिए खुद सूर्य  ऊर्जा ही प्रयोग किया जाये तो यह खर्चा भारत के लिए 20/- रुपया ही आएगा......

सूर्य ऊर्जा और थोरियम भारत को विश्व का राजा बना देंगे..लेकिन बीच में लुटेरो की जमात कांग्रेस आ जाती है....

भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए सभी बधाओं को हटाने का संकल्प ले..2अक्तूबर के दिन....याद रखे..
जय भारत..


स्वामी रामदेव बनाम कांग्रेस फकीर की वजीर से लड़ाई,ॐ VS रोम


तमाम उत्पादों को सौ प्रतिशत शुद्ध और खरा बताते हुए योगगुरु बाबा रामदेव ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार उनके खिलाफ षडयंत्र कर रही है.
उन्होंने बुधावार को हरिद्वार में कहा कि केंद्र सरकार उनसे इस तरह का व्यवहार कर रही है और वह अंतिम सांस तक संघर्ष करते रहेंगे.
योगगुरु बाबा रामदेव ने कहा कि जैसे आईएसआई भारत को अपना दुश्मन मानकर कार्रवाई करती है, इसी तरह भारत सरकार हमसे व्यवहार कर रही है. हम पर सरकार ने 90 लाख करोड का जुर्माना लगाया है.
उन्होंने कहा कि मेरे खिलाफ सरकार के नोटिसों का ‘शतक्रम’ पूरा हो चुका है और अब ‘सहस्त्रक्रम’ की श्रंखला शुरू हो गयी है. बाबा ने अपने खिलाफ सरकारी कार्रवाई को ‘फकीर की वजीर’ से लडाई बताया.

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार उनके उत्पादों के संदर्भ में उन्हें रिपोर्ट दिये बिना सीधे मीडिया में उछालकर बदनाम कर रही है. पिछले एक माह से खामोश सरकार अक्तूबर के आंदोलन से पहले फिर हरकत में आ गयी है.
बाबा ने अपने उत्पादों को खरा बताते हुए कहा सरकार के एफएसएसआई एक्ट 2006 के नये ‘क्वालिटी स्टैंर्डड’ पर हमारे सभी उत्पाद सरकार की ही रिपोर्ट के अनुसार खरे हैं.
बाबा ने कहा कि हम गुणवत्ता की दृष्टि से अन्तरराष्ट्रीय स्तर के उत्पाद तैयार कर रहे है तथा सरकारी सूची में शामिल प्रयोगशालाओं में से तीन अलग-अलग प्रयोगशालाओं मे हम अपने उत्पाद का पहले ही परीक्षण करवा चुके है. केवल लेबल पर प्रिंटिग या मिस ब्रांडिंग के आरोप हम पर लगाये गये है

Engagement of guest teacher in Director of Education in Delhi


शिक्षक भर्ती: RPSC का ये कैसा खेल, अभ्यर्थियों ने मांगी तो नष्ट कर दीं OMR शीटें

जयपुर.राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) ने द्वितीय श्रेणी शिक्षक भर्ती (सामाजिक विज्ञान) 

के तीन लाख नौ हजार अभ्यर्थियों की उत्तर पुस्तिकाएं नष्ट कर इस परीक्षा की पारदर्शिता पर सवाल 

खड़े कर दिए हैं। हाईकोर्ट ने 5 सितंबर को ही आरपीएससी को दिशा-निर्देश दिए थे कि अभ्यर्थियों को 

ओएमआर शीट दिखाई जाए। इसके बावजूद आरपीएससी ने 11 सितंबर को सभी ओएमआर शीट नष्ट 

कर दी।

http://www.bhaskar.com/article/RAJ-JAI-teacher-recruitment-3845048.html?HF-19

डालर और रुपये की समय समय पर कीमत::


 1947 में 1 डालर = 1.00 रूपये
 1966 में 1 डालर = 7.50 रूपये
 1975 में 1 डालर = 8.40 रूपये
 1984 में 1 डालर = 12.36 रूपये
 1990 में 1 डालर = 17.50 रूपये
 1991 में 1 डालर = 24.58 रूपये
 1992 में 1 डालर = 28.97 रूपये
 1995 में 1 डालर = 34.96 रूपये
 2000 में 1 डालर = 46.78 रूपये
 2001 में 1 डालर = 47.93 रूपये
 2002 में 1 डालर = 48.98 रूपये
 2003 में 1 डालर = 45.57 रूपये
 2004 में 1 डालर = 43.84 रूपये
 2005 में 1 डालर = 46.11 रूपये
 2007 में 1 डालर = 44.25 रूपये
 2008 में 1 डालर = 49.82 रूपये
 2009 में 1 डालर = 46.29 रूपये
 2010 में 1 डालर = 45.09 रूपये
 2011 में 1 डालर = 51.10 रूपये
 2012 में 1 डालर = 54.47 रूपय

 ध्यान देने वाली बात तो ये है कि 1991 से मंदमोहन विश्व बैक के कर्मचारी बने और तब से लेकर अब तक रूपये .ेकी वैल्यू में 3 गुना से अधिक. कमज़ोरी आई है

Wednesday, September 26, 2012

अँग्रेजी भाषा के बारे में भ्रम : गुलामी या आवयश्कता


आज के मैकाले मानसों द्वारा अँग्रेजी के पक्ष में तर्क  और उसकी सच्चाई :
1. अंग्रेजी अंतरार्ष्टर्ीय भाषा है:: िवश्व में इस समय 10 सबसे बड़ी अथर्व्यवःथायें (Top 10
Economies) अमेिरका, चीन, जापान, भारत, जमर्नी, रिशया,ब्राजिल, ब्रिटेन,फ़्रांस एवं इटली है| िजसमे
मात्र  २ देश ही अंमेजी भाषा का प्रयोग करते हैं अमेिरका और ब्रिटेन वोह भी एक सी नहीं, दोनों
िक अंग्रेजी में भी अंतर है | अब आप ही बताएं िक िकस आधार पर अंमेजी को वैिश्वक भाषा
(Global Language) माना जाए |दुिनया में इस समय 204 देश हैं और मात्र 12 देशों में अँग्रेजी
बोली, पढ़ी और समझी जाती है। संयुक्त राष्टर् संघ जो अमेिरका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है,
वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। इन अंग्रेजों की जो बाइिबल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी
और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलतेथे। ईशा मसीह की भाषा और बाइिबल की भाषा अरमेक थी।
अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से िमलती जुलती थी, समय के कालचब में
वो भाषा िवलुप्त हो गयी। पूरी दुिनया में जनसंख्या के िहसाब से सिर्फ 3% लोग अँग्रेजी बोलते हैं
िजसमे भारत दूसरे नंबर पर है | इस िहसाब से तो अंतरार्ष्टर्ीय भाषा चाइनीज हो सकती है क्यूंिक
ये दुिनया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती हैऔर दूसरे नंबर पर िहन्दी हो सकती है।
2. अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है:: िकसी भी भाषा की समृिद्ध इस बात से तय होती है की उसमें
िकतने शब्द हैं और अँग्रेजी में िसफर् 12,000 मूल शब्द हैं बाकी अँग्रेजी के सारे शब्द चोरी के हैं
या तो लैिटन के, या तो फ्रेंच के, या तो मीक के, या तो दक्षिण  पूर्व  एशिया  के कुछ देशों की
भाषाओं के हैं। उदाहरण: अँग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सब UNCLE चाची, ताई, मामी, बुआ
सब AUNTY क्यूंकी अँग्रेजी भाषा में शब्द ही नहीं है। जबिक गुजराती में अकेले 40,000 मूल
शब्द हैं। मराठी में 48000+ मूल शब्द हैं जबिक िहन्दी में 70000+ मूल शब्द हैं। कैसे माना जाए
अँमेजी बहुत समृद्ध भाषा है ?? अँग्रेजी सबसे लाचार/ पंगु/ रद्दी भाषा है क्योंिक इस भाषा के
िनयम कभी एक से नहीं होते। दुिनया में सबसे अच्छी भाषा वो मानी जाती है िजसके िनयम
हमेशा एक जैसे हों, जैसे: संस्कृत । अँग्रेजी में आज से 200 साल पहले This की स्पेलिंग  Tis होती
थी। अँग्रेजी में 250 साल पहले Nice मतलब बेवकूफ होता था और आज Nice मतलब अच्छा
होता है। अँग्रेजी भाषा में Pronunciation कभी एक सा नहीं होता। Today को ऑस्ट्रेलिया  में
Todie बोला जाता है जबकि ब्रिटेन में Today. अमेिरका और ब्रिटेन में इसी
बात का झगड़ा है क्योंिक अमेरीकन अँग्रेजी में Z का ज्यादा प्रयोग करते हैं और ब्रिटिश अंग्रेजी
में S का, क्यूंकी कोई िनयम ही नहीं है और इसीिलए दोनों ने अपनी अपनी अलग अलग अँग्रेजी
मान ली।
3. अँग्रेजी नहीं होगी तो िवज्ञान और तकनीक की पढ़ाई नहीं हो सकती:: दुिनया में 2 देश इसका
उदाहरण हैं की िबना अँमेजी के भी िवज्ञान और तकनीक की पढ़ाई होटी है- जापान और फ़्रांस ।
पूरे जापान में इंजीन्यिरंग, मेिडकल के जीतने भी कॉलेज और िवश्विवद्यालय हैं सबमें पढ़ाई
"JAPANESE" में होती है, इसी तरह फ़्रांस में बचपन से लेकर उच्चिशक्षा तक सब फ्रेंच में पढ़ाया
जाता है।हमसे छोटे छोटे, हमारे शहरों िजतने देशों में हर साल नोबल िवजेता पैदा होते हैं लेिकन
इतनेबड़े भारत में नहीं क्यूंकी हम िवदेशी भाषा में काम करते हैं और िवदेशी भाषा में कोई भी
मौिलक काम नहीं िकया जा सकता सिर्फ  रटा जा सकता है। ये अग्रेजी का ही पिरणाम है की
हमारे देश में नोबल पुरःकार िवजेता पैदा नहींहोते हैं क्यूंकी नोबल पुरःकार के िलए मौिलक
काम करना पड़ता है और कोई भी मौिलक काम कभी भी िवदेशी भाषा में नहीं िकया जा सकता
है। नोबल पुरःकार के िलए P.hd, B.Tech, M.Tech की जरूरत नहीं होती है। उदाहरण: न्यूटन
कक्षा 9 में फ़ेल हो गया था, आइस्टीन कक्षा 10 के आगे पढे ही नही और E=hv बतानेवाला मैक्स
प्लांक कभी ःकूल गया ही नहीं। ऐसी ही शेक्सिपयर, तुलसीदास, महिषर् वेदव्यास आदि  के पास
कोई डिग्री नहीं थी, इनहोने सिर्फ  अपनी मातृभाषा में काम िकया।जब हम हमारे बच्चों को अँग्रेजी
माध्यम से हटकर अपनी मातृभाषा  में पढ़ाना शुरू करेंगे तो इस अंग्रेजियत  से हमारा रिश्ता
टूटेगा। अंमेजी पढ़ायें इसमें कोई बुरे नहीं लेिकन िहंदी या माऽभाषा की कीमत पर नहीं| िकसी भी
संस्कृति  का पुट उसके सािहत्य में होता है और सािहत्य िबना भाषा के नहीं पढ़ा जा सकता|
सोिचये यदि  आज के बालकों को िहंदी का ज्ञान ही नहीं होगा तो वे कैसे रामायण, महाभारत और
गीता पढ़ सकें गे िजसका ज्ञान प्राप्त  करने के िलए हजारों अंग्रेज ऋिषकेश, वाराणसी, वृन्दावन में
पड़े रहते हैं और बड़ी लगन से िहंदी एवं संःकृत का ज्ञान प्राप्त  करतें हैं |क्या आप जानते हैं
जापान ने इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली ? क्यूंकी जापान के लोगों में अपनी मातृभाषा
से िजतना प्यार है उतना ही अपने देश से प्यार है। जापान के बच्चों में बचपन से कूट- कूट कर
राष्ट्रीयता  की भावना भरी जाती है।जो लोग अपनी मातृभाषा से प्यार नहीं करते वो अपने देश से
प्यार नहीं करते सिर्फ झूठा िदखावा करते हैं। दुिनया भर के वैज्ञािनकों का मानना है की दुिनया
में कम्प्युटर के िलए सबसेअच्छी भाषा 'संस्कृत  है। सबसे ज्यादा संस्कृत  पर शोध इस समय
जर्मनी  और अमेिरका में चल रहा है। नासा ने 'िमशन संस्कृत' शुरू िकया है और अमेिरका में बच्चों
के पाठ्यबम में संस्कृत  को शािमल िकया गया है। सोिचए अगर अँग्रेजी अच्छी भाषा होती तो ये
अँग्रेजी को क्यूँ छोड़ते और हम अंग्रेजियत  की गुलामी में घुसे हुए है। कोई भी बड़े से बड़ा तीस
मार खाँ अँग्रेजी बोलतेसमय सबसे पहले उसको अपनी मातृभाषा  में सोचता है और िफर उसको
िदमाग में Translate करता है िफर दोगुनी मेहनत करके अँग्रेजी बोलता है। हर व्यिक्त अपने जीवन
के अत्यंत िनजी क्षणों में मातृभाषा ही बोलता है। जैसे: जब कोई बहुत गुःसा होता है तो गाली
हमेशा मातृभाषा में ही देता हैं।िकसी भी व्यिक्त िक अपनी पहचान ३ बातो से होती है, उसकी
भाषा, उसका भोजन और उसका भेष (पहनावा). अगर ये तीन बात नहीं हों अपनी संस्कृति  की
तो सोिचये अपना पिरचय भी कैसे देंगे िकसी को ?

Tuesday, September 25, 2012

malls को जबरदस्ती भारत पर थोपा जा रहा है :


अमेरिकन और यूरोपियन अर्थव्यवस्था में, क्योंकि हर वस्तु हर स्थान पर उपलब्ध नहीं होती इसीलिए वो हर स्थान पे, जहां से भी जो कुछ मिले वो सब इकट्ठा कर के, Centralized करके एक स्थान पर रखते है ताकि लोग आ के खरीद कर ले जा सके और अपनी जिन्दगी चला स
 के । इसी के लिए उन देशों ने shopping malls बनाये । भारत के दुकान और यूरोप के shopping malls में ज़मीन - असमान का अंतर है । उनके malls में गाड़ी से ले कर सुई की धागा भी मिलेगा क्योंकि यदि न मिले तो उनकी जिन्दगी नहीं चलेगी । तो उन देशो के shopping malls उनके मजबूरीयों की उपज है ।
 centralized malls रखने के लिए उनके देशो में बड़ी कंपनियों का जरूरत है और बड़ी कंपनियों के लिए बड़ी पूंजी की जरुरत है । एक mall खोलने में 2 से 50 लाख डोलर (1 से 25 करोड़ रुपये) लगते है जो सिर्फ बड़ी कंपनियों के पास हैं ...जैसे wall -mart । wall -mart के एक साल का टोटल सेल भारत सरकार के बजट से दो गुणा अधिक है । भारत का एक साल का बजट 5.5 लाख करोड़ है और wall -mart का एक साल का सेल 11 लाख करोड़ ।
 भारत देश की विशेषता है की यहाँ सब कुछ सभी स्थानों पे उपलब्ध होता है, और जब सब कुछ सभी स्थानों पे उपलब्ध है तो भारत में decentralization है । यूरोप अमेरिका में ऐसा नहीं होता अतः वहां centralization है I समय-समय पर विदेशी अक्रान्ताओ ने भारत के उत्तम decentralized व्यवस्था को तोड़ने का प्रयास किया लेकिन 600 साल में भी कोई सफल नहीं हुआ परन्तु अब यही कुप्रयास भारत में डॉ मनमोहन सिंह कर रहे हैं ।
 भारत की सरकार भारत की अर्थव्यवस्था को ऐसे स्थान पर ले जा के खड़ा करना चाहती है जहाँ यूरोप और अमेरिका मज़बूरी में खड़ा है । उनकी मजबूरी को हमारी सरकार और जनता समृद्धि एवं विकास का प्रतीक मान रही है । परन्तु इससे भारत की बेरोजगारी और बढ़ेगी । यानी malls जितने रोजगार खड़े करेंगे उससे अधिक को बेरोजगार कर देंगे । बड़ी कंपनिया आने से monopoly बढता है, competition नही बढता ।
http://www.youtube.com/watch?v=H-Z4QO2P5b8

Monday, September 24, 2012

क्या आप जानते हैं ?? "अशोक चिन्ह" को बाबा साहिब अंबेडकर ने क्यों अपनाया था ?


क्या आप जानते हैं ??
"अशोक चिन्ह" को बाबा साहिब अंबेडकर ने क्यों अपनाया था ?

शायद आजादी के इतने साल बाद भी किसी ने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया। इसका कारण सिर्फ इतना था कि आजादी के बाद बाबा साहिब अंबेडकर का सिर्फ एक सपना आरक्षण भी जो १० साल में पूरा होना था अब तक नहीं कर पाए, बस उसको वोट बेंक का आधार बनाकर रख दिया।
अशोक चिन्ह लेकर वे अशोक की तरह का शासन देने का सपना पाले हुए थे, जिसको हमारे नेताओ ने पूरा करने की पहल तक नहीं की।

१. अशोक के शासन की तरह से राज्य की सड़कों के दोनों ओर फलदार पेड़ लगाये जाए (पर वृक्षारोपण में बेकार पेड़ लगाये गए जिनका प्रयोग इमारती लकड़ी में भी नहीं होता और
ना किसी प्रकार के पशुओं के चारे में इस्तेमाल होता क्यों ?)
२. अशोक ने अपने राज्य में जगह जगह पर रुकने के सराय बनवाई थी। (और हमारी सरकारों ने उस ओर क्या ध्यान दिया ? सभी को मालूम है कि सरकारी गेस्ट हॉउस किस के लिए हैं और वहां पर क्या होता है ?)
३. अशोक के राज्य में सभी कत्लगाहों को बंद कर दिया था। ( क्योंकि उसके स्थान पर पूर्ति फलो से हो जाती थी, ये तो मुगलों के आने बाद आरम्भ हुए थे जिसको ब्रिटिश के आने बाद भी चालू रखा गया था और आज भी चालू है जिसे बाबा साहिब बंद करना चाहते थे।)
४. अशोक के राज्य में जगह जगह पर शुद्ध पानी के प्याऊ लगवाये गए थे यहाँ तक प्रत्येक गाव में कुएँ खुदवाए गए थे। (आजादी के बाद कुएँ सिर्फ कागजो पर खोदे गए थे) क्यों कुछ गलत है क्या ?

अब अशोक चिन्ह राष्ट्रीय प्रतीक रखकर भारत सरकार ये काम ना करके क्या अशोक चिन्ह का अपमान नहीं कर रही है ? क्या इस चिन्ह को रखने का अधिकार है ? क्या ये हमारा अपमान नहीं है क्या ? क्या ये इस देश के संविधान के निर्माता का जो उन्होंने चिन्ह को अपनाया है उसका अपमान नहीं है ?
यह आप सबको फैसला करना है कि गलती अगर होती है तो उसका सुधार भी होता है, पर कब जब समय निकल जाये तब .....!!

[चाणक्य शर्मा]

जय हिन्द, जय भारत !
वन्दे मातरम्



विदेशी कंपनी Nestle (नैस्ले) से सामान खरीदना बंद करें

दोस्तों याद रखना क्रांतिकारी मंगलपांडे को.......जिसने आजादी की पहली गोली गौ माता की रक्षा के लिए चलाई थी और अंग्रेज़ मेजर हयूसन को उड़ा दिया था और फिर उनको फांसी हुई। 

हमारे क्रांतिवीर गौ माता के रक्षा के लिए फांसी पर चढ़े है !!

और आप गौ माता की रक्षा के लिए इस विदेशी कंपनी Nestle (नैस्ले) से सामान खरीदना बंद नहीं कर सकते ??

याद रखो ये वही विदेशी कंपनी Nestle है, जो अपनी चाकलेट Kitkat में गाय के बछड़े के मांस का रस मिलाती  है। 






देश कैसे खुशहाल हो सकेगा


एक बार एक हंस और एक हंसिनी जंगल में घूम रहे थे बातों बातों में समय का पता नहीं चला शाम हो गयीवो अपने घर का रास्ता भूल गए और चलते-चलते एक सुनसान जगह पर एक पेड़ के नीचे जाकर रुक गए . हंसिनी बोली मैं बहुत थक गयी हूँ चलो रात यहीं बिताते हैं सुबह होते ही चल पड़ेंगे. हंस बोला ये बहुत सुनसान और वीरान जगह लगती है (—-”यहाँ कोई उल्लू भी नहीं रहता है”—–) चलो कोई और जगह देखते हैं . उसी पेड़ पर बैठा एक उल्लू हंस और हंसिनी बातें सुन रहा था वो बोला आप लोग घबराएँ नहीं मैं भी यहीं रहता हूँ डरने की कोई बात नहीं है आप सुबह होते ही चले जाईयेगा . हंस और हंसिनी उल्लू की बात मानकर वहीँ ठहर गए .   सुबह हुई हंस और हंसिनी चलने लगे तो उल्लू ने उन्हें रोक लिया और हंस से बोला तू हंसिनी को लेकर नहीं जा सकता ये मेरी पत्नी है.

यू.पी. में शिक्षकों की भर्ती का आवेदन अगले माह


 जागरण ब्यूरो, लखनऊ : बेसिक शिक्षा परिषद के संचालित प्राथमिक स्कूलों में 85,556 शिक्षकों की भर्ती के लिए अगले माह विज्ञापन प्रकाशित किए जाएंगे। इनमें से 72,825 पद पर अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी)/केंद्रीय अध्यापक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) उत्तीर्ण बीएड डिग्रीधारक की नियुक्ति की जाएगी। जिन्हें चयन के बाद छह माह का विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। वहीं 9820 पदों पर टीईटी/सीटीईटी उत्तीर्ण उन अभ्यर्थियों का चयन किया जाएगा जो बीटीसी 2004, विशिष्ट बीटीसी 2004-05, 2007 व 2008 व दो वर्षीय बीटीसी उर्दू प्रवीणताधारी प्रशिक्षण पूरा कर चुके हैं। इनके अलावा 2911 पदों पर 1997 से पहले मुअल्लिम-ए-उर्दू या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) से डिप्लोमा इन उर्दू टीचिंग की उपाधि हासिल करने वाले अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी जाएगी। मुअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों और एमएयू से डिप्लोमा इन उर्दू टीचिंग की उपाधि हासिल करने वालों को टीईटी से छूट देने का मामला शासन स्तर पर विचाराधीन है। शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पर चर्चा करने के लिए शनिवार को प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा सुनील कुमार की अध्यक्षता में शासन स्तर पर बैठक हुई। बैठक में शिक्षकों की भर्ती के लिए आठ अक्टूबर को विज्ञापन प्रकाशित करने की संभावित तिथि तय की गई। अभ्यर्थियों से ऑनलाइन आवेदन प्राप्त करने की अंतिम तिथि 10 नवंबर निर्धारित की गई है। ऑनलाइन आवेदन की अंतिम तिथि बीतने के बाद उर्दू शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति के लिए निबंध की लिखित परीक्षा भी आयोजित होगी। 16 नवंबर को नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआइसी) जिलों में चयनित अभ्यर्थियों की मेरिट सूची प्रकाशित कर देगा। 23 नवंबर से बीटीसी 2004, विशिष्ट बीटीसी 2004-05, 2007, 2008 व दो वर्षीय बीटीसी उर्दू प्रवीणताधारी प्रशिक्षण पूरा कर चुके अभ्यर्थियों तथा मुअल्लिम-ए-उर्दू या एएमयू से डिप्लोमा इन उर्दू टीचिंग की उपाधि हासिल करने वाले अभ्यर्थियों की काउन्सिलिंग शुरू हो जाएगी। वहीं शिक्षकों के 72,825 पदों पर चयनित बीएड डिग्रीधारकों की काउन्सिलिंग तीन दिसंबर से शुरू होगी।