Saturday, October 6, 2012

स्वर्गिय राजीव दिक्सित जी...


जागो और जगाओ अपने आप को कैंसर से बचाओ!!!!!



 आलू की चिप्स से हो सकता है कैंसर फास्ट फूड आउटलेट में परोसी जाने
 वाली आलू की चिप्स पकाने की अपनी शैली को लेकर इसका सेवन करने वालों में कैंसर का कारण बन सकती है। वैज्ञानिकों ने बेहद उच्च तापमान पर
 पकाई गई चिप्स में एक्रीलामाइड रसायन का पता लगाया है जो सिर्फ अपनी पकाने की प्रक्रिया के कारण कैंसर का कारण बन सकता है । डेली एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर में कहा गया है कि बिक्री से पहले अधपके रखे गए
 आलुओं को जब परोसने से पहले बेहद उच्च तापमान पर
 पकाया जाता है तो उनमें एक्रीलामाइड का स्तर और अधिक बढ़ जाता है। एक्रीलामाइड एक कारसिनोजेन है।
 यह बिस्कुट, ब्रेड, कुरकुरी चीजों और चिप्स में
 पाया जाता है जिन्हें 120 डिग्री सेल्सियस
 तापमान से अधिक पर पकाया, तला या भूना जाता है!


 References:-








रोबर्ट वाड्रा पर क्यूँ इतनी मेहरबान है सरकार :


Thursday, October 4, 2012

अंग्रेजी के चक्कर में हुआ बड़ा ही घाटा

नमस्कार को टाटा खाया, नूडल को आंटा !!
अंग्रेजी के चक्कर में हुआ बडा ही घाटा !!
बोलो धत्त तेरे की !!

माताजी को मम्मी खा गयी, पिता को खाया डैड !!

और दादाजी को ग्रैंडपा खा गये, सोचो कितना बैड !!

बोलो धत्त तेरे की !!

गुरुकुल को स्कूल खा गया, गुरु को खाया चेला !!
और सरस्वती की प्रतिमा पर उल्लू मारे ढेला !!
बोलो धत्त तेरे की !!

चौपालों को बियर बार खा गया, रिश्तों को खाया टी.वी. !!
और देख सीरियल लगा लिपिस्टिक बक-बक करती बीबी !!
बोलो धत्त तेरे की !!
रस्गुल्ले को केक खा गया और दूध पी गया अंडा !!
और दातून को टूथपेस्ट खा गया, छाछ पी गया ठंढा !!
बोलो धत्त तेरे की !!

परंपरा को कल्चर खा गया, हिंदी को अंग्रेजी !!
और दूध-दही के बदले चाय पी कर बने हम लेजी !!
बोलो धत्त तेरे की !!

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश


कृपया यह पूरा लेख पढ़ें ........
सरल हिन्दी में लिखा गया है : F D I यानि  Foreign Direct Investment के मतलब  को - आज के लेख के शीर्षक में  .
हिंदी के प्रति हमारे कम हुए लगाव का परिणाम है कि हम केवल " एफ डी आई " ही समझ पा रहे हैं - इसके माने क्या है - इस गहराई में उतरने पर केवल मात्र  सिरहन , बेबसी , उकताहट , निराशा , हताशा , लाचारी और गुलामी ...... बस कुछ इसी तरह के अर्थ निकलेंगे . 
ज़रा इन पर्याय वाची शब्दों के मायाजाल से निकल कर  सरल और सहज भाव से सोचिए कि " कोई " क्यों आपके व्यापार में बिना पूंजी के रकम लगाएगा ? " वह " आपकी सहायता क्यों करना चाहता है ? सरल सा उदाहरण : आप अपने घर / दुकान के निर्माण - कार्य में व्यस्त हैं , रकम थोड़ी कम पड़ रही है , इसी बीच बिलकुल अनजाना दूर देश का राही आकर आपको कहता है कि लाओ बाकी का निर्माण मैं करा देता हूँ ...... कैसा लगेगा आपको ? बस .... ....
अभी जो बवाल मचा है कि खुदरा किराणा व्यापार इस " शब्द " के अंतर्गत होगा ......यही तो मायाजाल है ! यह तो अंग्रेजों को दुबारा बुलाने की तरकीब मात्र है . एक कहावत है " सिर भी तुम्हारा - जूता भी तुम्हारा " देश के गद्दारों ने हमारा ही पैसा लूट कर विदेशियों के हवाले कर दिया - अब वही पैसा हम पर शासन करने आ रहा है . आप अपने स्वयं के जीवनकाल ( विद्यार्थी भी अपने छोटे से जीवनकाल से समझ सकते हैं ) में झाँक कर देखें कि " फोगट या फ़ोकट " शब्द आपातकाल में धोखा ही देता है , कड़ी मेहनत - सच्ची लगन की कमाई ही बरकत करती है . 
एक बात और : क्या हम और हमारे बच्चे केवल मात्र " नौकर " बनने के लिए ही काबिल है ? यह भयंकर दुर्भाग्य का दौर चल रहा है कि आज की नौजवान पीढ़ी बिना सोचे समझे न जाने क्या क्या " पढ़ " रही है ! उद्देश्य मात्र नौकरी का !! प्राकृतिक संसाधनों , जंगलों में बिखरी पड़ी अमूल्य जड़ी - बूंटी जैसी संपदाओं , खेत - खलिहानों , फल - फूलों , शाक - शब्जियों , विभिन्न अनाजों ........ इस धरा की अमूल्य धरोहरों को भी ये विदेशी पैनी नज़रों से देख रहे हैं . क्यों ? क्योंकि हमें तो बस " पढ़ " कर १८ - २० घंटों की गुलामी ( नौकरी का कड़ा हरियाणवी शब्द ) करनी है ..... क्या करना है खेत - खलिहानों से ? 
ध्यान रखिए - ये एफ डी आई टाइप के लूटेरे एक दिन आपके घरों में घुस कर हमारे लिए बच्चों का उत्पादन भी करने लग जाएंगे ... और हम शानदार सूट - हैट पहन कर घर के बाहर चोकीदारी करते नज़र आयेंगे - हमारा अतीत गवाह है इस बात का - इस कड़वी तथ्यात्मक बात के लिए मैं मेरे समस्त देशवासियों से नतमस्तक होकर अग्रिम क्षमा की भी याचना करता हूँ ...... पर सच्चाई आपके कानों में उड़ेलना चाहता हूँ . 
सचेत हो जाओ , हमें हमको - हमारों को बचाना है  तो इन क्षुब्द राजनीतिक दलों की दलीलों से भी ऊपर उठ कर " गुलामी की चिकनी रोटी की  जगह आज़ादी की हरी घास खानेको तैयार करना है " 
मर्जी आपकी ...........
जुगल किशोर सोमाणी , जयपुर  

मौत और बीमारी के सौदागर को आरबीआई का निदेशक बनाया गया|


 इसी महीने में भारत सरकार ने भारतीय तंबाकू कंपनी (आईटीसी) लिमिटेड के अध्यक्ष, वाई सी देवेश्वर को भारतीय रिजर्व बैंक के केन्द्रीय निदेशक बोर्ड के निदेशक के रूप में मनोनीत किया गया है....
 जनवरी 2011 में भारत सरकार ने देवेश्वर को भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान में से एक, पद्म भूषण से सममानित किया था।
 यह प्रशंसा एक ऐसे कंपनी के लिए जो अपने 5.5 करोड़ वफादार कस्टमरों को समय से पूर्व मार देती है और स्वास्थ्य को क्षति पहुंचाती है!

Wednesday, October 3, 2012

हमारे राष्ट्र के पतन के कुछ मुख्य कारण :-


 १- सत्ता परिवर्तन का माध्यम जनता , किन्तु सत्ता में जनता का अधिकार शुन्य |

 २-सत्ता पर आसीन व्यक्ति जनता का माई बाप बन जाता है और जनता के फैसले करने का अधिकार उसके पास आ जाता है और जनप्रतिनिधि इसी घमंड में खुद को भगवान् समझने लगता है और जनता खुद को दास |

 ३-सत्ता आते ही जनता के उत्थान की बात करने वाला जनता से अपनी दुरी बना लेता है और जनता उसकी दुरी को अपन
 ा सौभाग्य मान लेती है |

 ४- जात पात का द्रेश फैला कर जनता को आपस में उलझाये रखते है ये नेता और सत्ता हाथ में आते ही संविधान का हवाला देने लग जाते है |

 ५-अय्यास , नशेडी , गुंडे , अत्याचारी , आतंकियों और मुस्लिम तुष्टिकरण के पैरोकार क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियों में शामिल किये जाते है और जनता उनको चुनती है और राज करने के लिए भेजती है ||

 ६- पढ़े लिखे बुद्धिजीवी वर्ग का सेकुलर होना और मुस्लिम समुदाय के पढ़े लिखे बुद्धिजीवी का और अधिक कट्टर होना |

 ७- सो काल्ड सेकुलर युवा पीढ़ी को सनातन धर्म के विषय में ज्ञान ना होना और अपने पूर्वजो के संघर्षमय इतिहास ज्ञात ना होना |

 ८-सो काल्ड सेकुलर युवा पीढ़ी का नशे की दुनिया में उतरना , राष्ट्र और धर्म से कोई मतलब ना होना |

 ९-तथाकथित हिन्दू और तथाकथित हिन्दुत्ववादी संगठनो का हिन्दुओं को भटकने की चाल और सच्चे हिन्दुत्वादी संगठनो के खिलाफ आग उगलना , दुष्प्रचार करना |

 १०-तथाकथित भारतीय जनमानस में नैतिकता का पतन , धर्मज्ञान का आभाव , राष्ट्रभक्ति क्रिकेट के मैदान पर समाप्त , सैनिकों और स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्र भक्तो का सम्मान न होना ||

 ११- सबसे बड़ा और प्रमुख कारण गांधी की नकली अहिंसा और कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण और लुट की राजनीति ||

 १२- भारतीय जनमानस में अपने अच्छे बुरे की समझ का ना होना और अपने भले के लिए दुसरे पर निर्भर होकर उसका गुलाम बन जाना ||

 और भी बहुत से कारण है हमारे राष्ट्र के पतन के ||

 सोचिये और इस भ्रम से निकालिए की आपके पड़ोस में भगत सिंह जन्म लेंगे और आपका उद्धार करेगे ,,,

Tuesday, October 2, 2012

लाल बहादुर शास्त्री जी को उनके जन्म दिवस पर शत् शत् नमन


जब लाल बहादुर शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी और घर आकर अपनी मां के चरण छुए तो उनकी माँ ने इतना कहा- "नन्हें, मैं चाहती हूं भले ही तुम्हें कुछ हो जाए, लेकिन देश को तुम्हारे रहते कुछ नहीं होना चाहिए, लोगों की सेवा तुम्हें जी-जान से करनी है, बिना अपनी जान की परवाह किए।"

 नमन ऐसी माँ को जिसकी कोख से देश के लाल ने जन्म लिया....!
 जय जवान, जय किसान !


Monday, October 1, 2012

पीजा, नूडल, मैगी, चाउमिन, बर्गर, ये सब हैं बर्बादी का घर.


कचरे मेँ कचरा सड़ाया हुआ आटा
 .
 बर्गर, पीजा, नूडल, मैगी, चाउमिन, मोमोज, मंच्यूरियन, पावरोटी, डबलरोटी, हॉटडॉग आदि
 .
 हम आटा क्योँ खाते हैँ ?
 कार्बोहाइड्रेट्स के लिये जो कि मिलता है ताजे आटे से
 और हमारी मूर्खता देखिये कि आटे को 10-15 दिन तक सड़ा के खाते हैँ और फिर भागते हैँ डॉक्टर के पास, सुबह शौचालय मेँ दो दो घण्टे तक पेट साफ नहीँ होता, भूख नहीँ लगती, सर्दी जुकाम रहता है, सिर मेँ माइग्रेन दर्द है, घुटने दर्द होते हैँ, त्वचा कठोर हो चुकी है, सिर के बाल कड़क हैँ, पसीने मे बहुत बदबू आती है, साँस मे से बहुत बदबू आती है, आलस्य रहता है, चुस्ती व कार्यक्षमता की कमी है आदि । आप जिस डॉक्टर को भगवान मानकर उसके पास जाते हैँ वो आपको ये छोटी सी जानकारी कभी नहीँ बताता कि ये सड़ा हुआ आटा शरीर के लिये कितना घातक होता है और पाचन तंत्र बिगाड़ देता है । डॉक्टर साहब को दरअसल आपकी चिकित्सा से अधिक अपने कमीशन की चिँता है क्योँकि लाखोँ रुपये डोनेशन देकर लोगोँ को लूटने के लिये डॉक्टरी पढ़ी है तो वसूली भी तो आपसे ही करेँगे । ये डॉक्टर नहीँ डाकू हैँ । जेब काटने वाले चाकू हैँ ।
 .
 आयुर्वेद अपनाओ जीवन बचाओ
 .
 पहला सुख निरोगी काया

तो बुरा क्या है..


नयी धुन चढ़ी शहर को मेरे.. तो बुरा क्या है..
 हम भी ज़रा मिजाज़ में ढल लिए.. तो बुरा क्या है!

 कोई ठिकाना नहीं इन हवाओं का बेशक..
 पर अब उंगलियाँ रेत पर चल गयीं .. तो बुरा क्या है!

 वैसे तो दुनिया गवाह है मेरी दरियादिली की..
 छुप के खैरात भी लूँ.. तो बुरा क्या है!

 यूँ तो लाखो हैं रंजिशें दिलो में लेकिन..
 हंस के बा अदब मिल लिए.. तो बुरा क्या है!

 वतन तो वैसे ही जल चुका खूबसूरत रोशनी से..
 थोड़ी चिंगारी हमने भी कर दी.. तो बुरा क्या है!


-शोभा प्रभाकर जी द्वारा रचित...

कहती बेटी बांह पसार


कहती बेटी बांह पसार
 मुझे चाहिए प्यार, दुलार

 बेटी की अनदेखी क्यूँ
 करता हैं निष्ठुर संसार

 सोचो ज़रा हमारे बिन
 बसा सकोगे घर परिवार

 गर्भ से ले कर यौवन तक
 मुझ पर लटक रही तलवार

 मेरी व्यथा, वेदना का
 अब हो स्थायी उपचार

Sunday, September 30, 2012

भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिसअल्तमस कबीर


 देश के नएमुख्य न्यायाधीश जस्टिसअल्तमस
 कबीर का संबंधएक रसूखदार और देश केजाने-
 माने परिवार से है।
 पिता औरचाचा मंत्री रहे। बहनभी हाई
 कोर्ट जज हैं।जस्टिस कबीर समाज
 केकमजोर वर्गों के
 प्रति बेहद संवेदनशील हैं।(कमजोर वर्ग
 केवल मुस्लिम)इसकी झलक उनकेनिजी जीवन
 और काम मेंभी दिखती है।अल्तमस का जन्म
 19जुलाई 1948 को फरीदपुर(अब बांग्लादेश में) में हुआ था। परिवार के कुछ लोगअब भी वहां रहते हैं। उनकेपिता जहांगीर औरचाचा हुमायूं कबीरकोलकाता में बस गए।पिता ट्रेड
 यूनियन लीडरथे। 1967 में पश्चिम
 बंगालकी पहली गैर-कांग्रेसी सरकार में
 वेमंत्री रहे। चाचा कईदफा केंद्रीय
 मंत्री रहे।अल्तमस की सगी बहनलैला पूर्व
 केंद्रीयमंत्री जॉर्ज
 फर्नांडीजकी पत्नी हैं, लेकिनयुवा अल्तमस
 का झुकावकानून की ओर था।1973 से
 उन्होंने वकालतशुरू की।
 इसी दौरानअपनेघर के ठीक नीचे
 रहनेवाली मीना से उन्हें प्रेमहुआ। वह
 कैथोलिक ईसाई
 थी। दोनों ने पहले चर्च मेंशादी की फिर
 निकाह किया।