Saturday, December 8, 2012

एक चिंतन:


समता मूलक समाज का निर्माण करने के लिए देश पर शासन करने वाले और देश के लिए नीतियां बनने वाले लोगो का देश कि जनता के साथ सीधा रिश्ता होना चाहिए| लेकिन जो शासकगण हैं, जो देश के लिए नीतियां बनाते हैं, जो संपन्न हैं, जो उच्च वर्ग हैं वो शहरों में रहते हैं, वे जनता से बिलकुल दूर हो गए हैं.| 

जब वे बच्चे होते हैं तो अलग स्कूलों में पढते हैं, और जब उनके बच्चे होते हैं तो वो भी इन्ही स्कूलों में पढते हैं| इस वर्ग को क्या मालूम की टाटपट्टी पर स्कूलों कि टपकती हुई छत के नीचे बैठने का क्या मतलब होता है? ये क्या जाने कि पेशाब की बदबू और कक्षा कि पढाई में क्या रिश्ता है? इस वर्ग का बच्चा घर आकार अपने पिता से शिकायत नही करता कि मास्टर उसपर झुंझलाहट निकालता है| हमारे देश के निति-निर्माता वर्ग को ये सब भोगना नहीं पड़ता, इसलिए कुछ चुनिन्दा स्कूलों पर तो करोडो रूपये  खर्च किये जाते हैं और जिन पाठशालाओं में करोड़ों बच्चे पढते हैं वे उपेक्षा का शिकार बनी रहती हैं|

जिस देश में "कॉन्वेंट" स्कूल नहीं होगा, और शासक वर्ग का बच्चा भी टाटपट्टी स्कूल में पढ़ेगा और घर आकार स्कूल की बदबू की, अँधेरे की, पिटाई की चर्चा करेगा, उस दिन देश कि शिक्षा का नक्शा बदल जाएगा|
जिस दिन रेल कि तृतीय श्रेणी में मंत्री धक्के खायेगा, अफसर को टॉयलेट के पास खड़े होकर रात काटनी पड़ेगी और नेता को दरवाजे से लटक कर सफर करना पड़ेगा, उस दिन देश कि रेलों कि दशा सुधारने के लिए सही चिंतन कि शुरुआत होगी....
वन्देमातरम....

Friday, December 7, 2012

for those who lost their mobile.


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