Monday, April 15, 2013

हिंदू होने कि सजा :




अश्विनी कुमार

 (एडिटर पंजाब केसरी):


वरिष्ठ पत्रकार खुशवंत सिंह की प्रसिद्ध पुस्तक 'ट्रेन टु पाकिस्तान' में विभाजन की त्रासदी और तकलीफों को बहुत ही भावनात्मक तरीके से बयान किया गया है। उन्होंने उम्मीद जाहिर की थी कि भविष्य में ऐसा कभी नहीं होगा लेकिन जब मैंने पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आए हिन्दू परिवारों की दास्तान सुनी तो मैंने महसूस किया कि मोहम्मद अली जिन्ना से लेकर आसिफ अली जरदारी तक पाकिस्तान से आने वाली ट्रेन कभी नहीं रुकी। आजादी के बाद से ही पाकिस्तान से हिन्दू परिवारों का भारत आना जारी रहा लेकिन पिछले कुछ वर्षों से पाकिस्तान में रह रहे हिन्दू, अहमदिया, सिख और ईसाई परिवार खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं और जाहिर है कि हिन्दू और सिख परिवार जब भी आएंगे भारत ही आएंगे। इस बार कुम्भ का स्नान करने के लिए वीजा लेकर आए पाकिस्तान के सिंध प्रांत के हिन्दू परिवार पाकिस्तान जाने की बजाय मर जाना पसंद कर रहे हैं। मीडिया द्वारा शोर मचाने पर बिजवासन में शरण लेकर बैठे इन परिवारों की वीजा अवधि सरकार ने एक माह और बढ़ा तो दी लेकिन यह समस्या का अस्थायी हल ही है। कोई भी व्यक्ति अपनी सम्पत्ति और रोजगार छोड़ कर दर-दर की ठोकरें खाने के लिए भारत क्यों आएगा लेकिन जब इन परिवारों पर अत्याचार हदें पार करने लगा तो उन्होंने पलायन करके भारत आना ही बेहतर समझा। पाकिस्तान में आतंकवाद और कट्टरवाद ने जो हालात पैदा किए हैं, वैसे तो उसमें एक सामान्य नागरिक जी ही नहीं सकता। वहां अल्पसंख्यकों को कोई ज्यादा अधिकार नहीं दिए जाते। उन्हें न तो धार्मिक आजादी है, न उनकी बहू-बेटियां सुरक्षित हैं। अल्पसंख्यकों को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है। आखिरकार उनके पास एक ही रास्ता बचता है या तो वह भारत आ जाएं या फिर धर्म परिवर्तन कर घुट-घुट कर जीवन जीने को मजबूर हो जाएं।
यूं तो पाकिस्तान में भी मानवाधिकार आयोग है और कई ऐसे संगठन हैं जो मानवाधिकारों के लिए आवाज बुलंद करते रहे हैं। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमलों में बढ़ौतरी की पुष्टिï की थी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि पाकिस्तान में हर महीने लगभग 25 हिन्दू लड़कियों का अपहरण हो जाता है। पाकिस्तान की प्रैस कराची और ब्लूचिस्तान में बलात्कार और धर्मांतरण की खबरें प्रकाशित करती रहती है। अल्पसंख्यकों के बच्चे स्कूलों में इस्लाम की शिक्षा लेने को मजबूर हैं। पाकिस्तान की अल्पसंख्यक महिलाओं को तो एक तरफ यौन शोषण का शिकार होना पड़ता है तो दूसरी तरफ वह अल्पसंख्यक होने का खामियाजा भुगतती हैं। एक महिला अपने तीन दिन के बेटे को दादा-दादी के पास छोड़कर यहां आई है। 15 वर्षीय बालिका तो अपनी अस्मिता को बचाने के लिए यहां आई। एक वृद्ध अपनी आंखों के सामने अपने घर की महिलाओं से बलात्कार होते नहीं देख सकते। इनका गुनाह केवल इतना है वह हिन्दू हैं।
विभाजन के समय पाकिस्तान नहीं जाने वाले मुस्लिम भारत में रह कर भाग्यशाली हैं क्योंकि यहां वह पूरी तरह सुरक्षित हैं और उन्हें पूरे अधिकार हैं। देश के शीर्ष पदों पर भी मुस्लिम आसीन रहे हैं। यदि पाकिस्तान की स्थापना के बुनियादी सिद्धांतों को देखा जाए तो इसमें वहां रहने वाले सभी धर्मों के लोगों को पूरी सुरक्षा, संरक्षण व सहयोग देने की बात कही गई थी, परन्तु धर्मांधता एवं धार्मिक कट्टïरवाद ने पाकिस्तान को आज इस मुकाम पर ला खड़ा किया है कि पूरी दुनिया में वह ऐसे देशों की सूची में सबसे ऊपर नजर आ रहा है। अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले रोकने में पुलिस और सरकार असहाय हो चुकी हैं। हिन्दुओं, सिखों, ईसाइयों के अलावा शिया हजारा समुदाय को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। ब्लूचिस्तान, स्वात घाटी जैसे क्षेत्रों में लश्करे झांगवी तथा सिपाहे सहाबा के आतंकी सैकड़ों शिया समुदाय के लोगों की हत्याएं कर चुके हैं। ईसाई समुदाय के लोगों को तो पाक में मामूली मजदूरी का काम भी नहीं मिल पाता। वास्तव में कट्टरपंथी ताकतों के आगे हुक्मरानों ने हथियार डाल रखे हैं। यह सब होना ही था क्योंकि पाकिस्तान की बुनियाद ही सत्ता पाने की इच्छा शक्ति पर रखी गई थी और सत्ता की भूख बढऩे के कारण हर राजनीतिज्ञ कट्टरपंथी ताकतों से सांठगांठ करता रहा।
भारत को पाकिस्तान में मानवाधिकारों के लगातार हनन को लेकर बड़ी भूमिका निभानी चाहिए थी लेकिन भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने कुछ न करने की कूटनीति अपना रखी है। विडम्बना यह भी है कि देश की धर्मनिरपेक्ष ताकतें हिन्दुओं का सवाल आते ही अपना व्यवहार बदल लेती हैं। संसद में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दू परिवारों को लेकर चर्चा भी हुई लेकिन सरकार ने किया कुछ नहीं। सारी दुनिया में मानवाधिकारों का ढिंढोरा पीटने वाला अमरीका पाक में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों पर बोलने को तैयार नहीं। अमरीका और संयुक्त राष्ट्र क्यों नहीं पाकिस्तान पर दबाव डालते कि वह अल्पसंख्यकों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निवर्हन करे। हिन्दू बंगलादेश, भूटान से भी भगाए जा रहे हैं और भारत सरकार ने तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ रखा है तो वह इन शरणार्थियों की क्या सुनेगी। इस देश में असम और कश्मीर के हिन्दुओं के हितों की बात करना भी मुसीबत हो चुकी है। लगता है यह देश शरणार्थियों का देश बनकर रह जाएगा। क्या पाक से लौटे परिवारों को नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए? क्या वह उम्र भर खानाबदोशों की जिन्दगी जीने को ही मजबूर रहेंगे?


नोट: अगर आप पाकिस्तान से आये इन हिंदू भाइयो बहनों, माताओं और बच्चों का कुछ सहयोग करना चाहते हैं तो कृपया जरुर सम्पर्क करें: 09996541063, 01275259734

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