Friday, June 20, 2014

साईं भक्ति यानी भक्ति जिहाद।

सीधा सा प्रशन साईं के भगवान् होने का सबूत किस ग्रन्थ में है, सीधा जवाब दे...
साईं सत्चरित्र में कही नहीं लिखा की साईं भगवान् श्री राम के भक्त थे या उनका नाम जपते थे?? तो साईं के भक्त साईं राम क्यों कहते है ?
शिर्डी साईं बाबा संत है या भगवान्??? अगर भगवान् है तो कहाँ लिखा है, अगर संत है तो क्या एक संत को भगवान् की तरह पूजना ठीक है?
साईं बड़ा या राम, अगर राम से बड़ा राम का नाम तो उनके साथ एक यवनी(मुसलमान) का नाम क्यों जोड़ा जा रहा है?
कोई कहता है शिर्डी साईं शिव का अवतार, कोई कहता है राम जी का भक्त, कुछ दत्तात्रेय का अवतार कहते है, क्या कोई बता सकता है की ऐसा कंफ्यूजन क्या श्री राम या श्री कृष्ण के बारे में है ?
हमने राम नाम पैदा होते ही सुना है, पर साईं का नाम आपने कब सुना?
कृपया इमानदारी से बताये. साईं सत्चरित्र लिखने वाले लेखक श्री गोबि द राव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाडपंत) हिन्दू थे मुसलमान?
शिर्डी के साईं बाबा उर्फ़ चाँद मियां उर्फ़ अब्दुल रहीम, ये हिन्दू थे या मुस्लिम?
कोई शिर्डी साईं को संत कह रहा है, कोई राम जी का भक्त तो कोई शिव का अवतार, जिसके बारे में सही से नहीं पता उसे लोग क्यों जबरदस्ती भगवान् बना रहे है?
क्या आप साईं भक्त है, अगर हाँ तो आपके लिए मांस खाना अनिवार्य है, क्यूंकि साईं बाबा प्रसाद में मांस मिलाते थे और भक्तो को बाँटते थे..
हम गुरुवार(ब्रहस्पतिवार)को किस देवता की पूजा करते हैं?
साईं सत्चरित्र में साफ़ साफ़ लिखा है की सब केवल अल्लाह मालिक बोलता था, कही भी ये वर्णित नहीं है की साईं ने ॐ बोला या राम, फिर साईं के मुर्ख भक्त ॐ साईं राम क्यों बोलते है, क्यों एक यावनी, मुसलमान को ज़बरदस्ती हिन्दू बनाने का एक घोर षड्यंत्र चल रहा है ?
साईं भक्त स्पष्ट करे, वो भी प्रमाण के साथ गीता में भगवान् कृष्ण कहते है की कलयुग में धर्म के अर्थ ही बदल जायेंगे, अब तक जहा केवल धर्म और अधर्म होता था कल्युग में धर्म तो रहेगा पर अधर्म भी स्वयं को धर्म कहेगा और हजारो धर्म बन जायेंगे साथ ही ऐसे दुष्ट लोग भी होंगे जो स्वयं को भगवान् और इश्वर कहेंगे, पर मैं ही इश्वर हु, मैं ही परब्रह्म हु और मैं ही सत्य हु, मुझे में सर्व्व्यपर्क और सब कुछ मुझसे ही उत्पन्न होता है और मुझमें समां जाता है, दूसरी तरफ शिर्डी के साईं बाबा जो साईं सत्चरित्र में हर जगह केवल अल्लाह मालिक कहते है, अब ये अल्लाह कौन है कोई साईं भक्त बतायेगा, क्या अल्लाह को मालिक कहना ये हमारे भगवान् श्री कृष्ण का अपमान नहीं है ?

ऐसे में आप बताये साईं सच्चा है या भगवान् कृष्ण, सच्चा तो एक ही होगा न इनमे से,,, साँईँ के चमत्कारिता के पाखंड और झूठ का ता चलता है, उसके "साँईँ चालिसा" से। आईये पहले चालिसा का अर्थ जान लेते है:- "हिन्दी पद्य की ऐसी विधा जिसमेँ चौपाईयोँ की संख्या मात्र 40 हो, चालिसा कहलाती है।" क्या आपने कभी गौर किया है?.

कि साँईँ चालिसा मेँ कितनी चौपाईयाँ हैँ?  यदि नहीँ, तो आज ही देखेँ.... जी हाँ, कुल 100 or 200. तनिक विचारेँ क्या इतने चौपाईयोँ के होने पर भी उसे चालिसा कहा जा सकता है? नहीँ न?..... बिल्कुल सही समझा आप.... जब इन व्याकरणिक व आनुशासनिक नियमोँ से इतना से इतना खिलवाड़ है, तो साईँ के झूठे पाखंडवादी चमत्कारोँ की बात ही कुछ और है! कितने शर्म की बात है कि आधुनिक विज्ञान के गुणोत्तर प्रगतिशिलता के बावजूद लोग साईँ जैसे महापाखंडियोँ के वशिभूत हो जा रहे हैँ॥ हिन्दुओ का सबसे बड़ा खतरा भी मोमिनो यानि मुसलमानों से है !  करोडो हिन्दू अपना माथा एक मोमिन की ह चौखट पर रगड रहे है !  शिर्डी वाले साईं महाराज एक मोमिन है ! " गोपीचंदा मंदा त्वांची उदरिले ! मोमिन वंशी जन्मुनी लोंका तारिले !" ( शिर्डी साईं मंदिर की तथाकथित "आरती का अंश ") क्या ये सब बाते आप को मालूम नहीं है ? या सब कुछ जानते हुए भी अपने सनातन धर्म के साथ एक मोमिन का नाम जुड़ना देखना चाहते है ? 

कल की ही एक घटना है, सत्य, इसमें मिलावट कुछ नहीं है,, कल मैं सुबह ऑफिस जा रहा था, रास्ते में एक मंदिर है जिसकी दिवार पर भगवानो की फोटो वाली टाइल्स लगी हुई है, मैंने देखा की एक आदमी आगे जा रहा था और वो केवल साईं के आगे झुका और चल दिया बाकी किसी भी सनातनी भगवान् के आगे उसने सर नहीं झुकाया, वो थोडा और आगे गया और एक और साईं की टाइल को छुआ और आगे फिर यही करता रहा, तीन टाइल छूने के बाद मैं भाग कर उसके पास गया और पूछा आपने साईं को प्रणाम किया पर बाकी अपने भगवानो को क्यों नहीं, उन्होंने कहा की अपनी अपनी श्रद्धा है, मैंने कहा वाह श्रद्धा में भी भेदभाव, फिर मैंने उनसे पूछा आपने साईं सत्चरित्र पढ़ी है, उन्होंने कहा नहीं, मैंने कहा पढ़िए और 22, 23 और 38 अध्याय जरुर पढ़े, उसे पढने के बाद मेरा विश्वास ह ै की आप साईं को भगवान् मानना बंद कर देंगे, अब वो महाशय आगे तो बढे पर आगे साईं की किसी टाइल को नहीं छुआ, ये है समझदार इंसान की पहचान जो पहले विश्लेषण करता है,,, अगर कोई मुर्ख होता तो वही मुझे पकड़ लेता और,,,,

साँई के अन्धभक्त अंधश्रध्दा मेँ डूबकर कहते हैँ कि "साँईं न तो हिन्दू हैँ और न ही मुस्लिम"। परन्तु वे इस बात का प्रत्य त्तर तो देँ:- 'श्री साँई बाबा संस्थान विश्वस्त व्यवस्था' से प्रकाशित साँईँ के जीवन की एकमात्र प्रामाणिक पुस्तक "साँईं सत्चरित्र" के 'अध्याय 28' के पृष्ठ 197 पर स्पस्ट वर्णन है कि..... {वे गर्जन कर कहने लगे की इसे बाहर निकाल दो, फिर मेधा की ओर देखकर साँईँ यह कहने लगे कि 'तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैँ एक निम्न जाति का एक यवन(मुसलमान) } अर्थात्‌ यहाँ साँईं स्वयं का मुसलमान होना कबूल करता है। साईं सत्चरित्र में कही भी ऐसा नहीं लिखा है की साईं बाबा ॐ जपते थे ये राम का नाम लेते थे, तो फिर साईं के भक्त ॐ साईं राम क्यों लिखते है या बोलते है, यही नहीं साईं सत्चरित्र में १४ जगह पर साईं ने कहा अल्लाह मालिक, साथ ही वे कहते थे सबका मालिक एक, और उसके कहने के दो चार सेकंड बाद ही कहते थे अल्लाह मालिक, तो आखिर क्यों उन्हें सनातन धर्म में जबरदस्ती घुसाया जा रहा है ?

कौन सी है वो ताकते जो हमारे ही धर्म को दूषित कर रही है ?  मैंने अधिकतर साईं भक्तो को देखा है जो शिर्डी साईं की अंधभक्ति करते है, पर ऐसे अंधभक्तो को एक आँख खोलने वाला उपाय बता रहा, कृपया करके आप साईं सत्चरित्र जरुर पढ़े तीसरे अध्याय तक आप साईं को मानना ही छोड़ देंगे यदि आप शाकाहारी है, अगले अध्यायों में आप 22, 23 और 38 अध्याय पढ़ कर तो बस क्या कहू, अगर बुद्धि होगी और दिमाग की बत्ती जल होगी तो इस साईं नाम के राक्षस को अपने जीवन से निकल कर बाहर फेंक देंगे और बकियों को भी बचाने की सोचेंगे, पर अगर मुर्ख होंगे तो ही आप साईं ही भक्ति करेंगे, आज के समय में हिन्दुओ के पतन का सबसे बड़ा कारण साईं ही है, इसलिए जितने भी साईं भक्त है उनसे मेरी प्रार्थना है की साईं सत्चरित्र अवश्य पढ़े,,, ये आपकी अंधश्रद्धा नहीं बल्कि आपके लाखो साल पुराने सनातन धर्म के अस्तित्व का प्रशन है जो आपकी मुर्खता के कारण पतन की और जा रहा है, अगर आप अब भी नहीं संभले तो आपके आने वाली संताने खतना करा कर नमाज पढ़ती नजर आयेंगी,, इसलिए पढ़े और जागे..... असतो मा सद्गमयः तमसो मा ज्योतिर्गमयः (हे परमेश्वर! हमेँ बुराई से अच्छाई, व अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो)

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जैसे सूर्य आकाश में छिपकर नहीं रह सकता, वैसे ही मार्ग दिखलाने वाले महापुरुष भी संसार में छिप कर नहीं रह सकते। वेदव्यास (महाभारत, वनपर्व)) यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपिमाम् गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भूत प्रेत, मूर्दा (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र अथवा समाधि) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत-प्रेत ही बनते हैं. जैसे की ये साईं

Jai Hind...

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