Wednesday, March 30, 2016

वेदों की अवहेलना भारी पड़ी हमें

क्या आप जानते है भारत की दुर्गति के पीछे वेद की आज्ञाओ का उलंघन ही था ?

1.) पहली आज्ञा

अक्षैर्मा दिव्य: ( ऋ 10/34/13 )
अर्थात जुआ मत खेलो ।

इस आज्ञा का उलंघन हुआ । इस आज्ञा का उलंघन धर्म राज कहेजाने वाले युधिष्टर ने किया ।

परिणाम :- एक स्त्री का भरी सभा में अपमान । महाभारत जैसा भयंकर युद्ध जिसमे करोड़ो सेना मारी गयी । लाखो योद्धा मारे गये । हजारो विद्वान मारे गये और आर्यावर्त पतन की ओर अग्रसर हुआ ।

2.) दूसरी आज्ञा

मा नो निद्रा ईशत मोत जल्पिः । ( ऋ 8/48/14)

अर्थात आलस्य प्रमाद और बकवास हम पर शासन न करे ।

लेकिन इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ । महाभारत के कुछ समय बाद भारत के राजा आलस्य प्रमाद में डूब गये ।

परिणाम :- विदेशियों के आक्रमण
3.) तीसरी आज्ञा

सं गच्छध्वं सं वद्ध्वम । ( ऋ 10/191/2 )

अर्थात मिल कर चलो और मिलकर बोलो ।

वेद की इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ । जब विदेशियों के आक्रमण हुए तो देश के राजा मिल कर नहीं चले । बल्कि कुछ ने आक्रमणकारियो का ही सहयोग किया ।

परिणाम :- लाखो लोगो का कत्ल , लाखो स्त्रियों के साथ दुराचार , अपार धन धान्य की लूटपाट , गुलामी ।

4.) चौथी आज्ञा

कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो में सव्य आहितः । ( अथर्व 7/50/8 )

अर्थात मेरे दाए हाथ में कर्म है और बाएं हाथ में विजय ।

वेद की इस आज्ञा का उलंघन हुआ । लोगो ने कर्म को छोड़ कर ग्रहों फलित ज्योतिष आदि पर आश्रय पाया ।

परिणाम : अकर्मण्यता  , भाग्य के भरोसे रह आक्रान्ताओ को मुह तोड़ जवाब न देना
, धन धान्य का व्यय , मनोबल की कमी और मानसिक दरिद्रता ।

5.) पांचवी आज्ञा

उतिष्ठत सं नह्यध्वमुदारा: केतुभिः सह ।
सर्पा इतरजना रक्षांस्य मित्राननु धावत ।। ( अथर्व 11/10/1)

अर्थात हे वीर योद्धाओ ! आप अपने झंडे को लेकर उठ खड़े होवो और कमर कसकर तैयार हो जाओ । हे सर्प के समान क्रुद्ध रक्षाकारी विशिष्ट पुरुषो ! अपने शत्रुओ पर धावा बोल दो ।

वेद की इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ जब लोगो के बिच बुद्ध ओर जैन मत के मिथ्या अहिंसावाद का प्रचार हुआ । लोग आक्रमणकरियो को मुह तोड़ जवाब देने की वजाय “ मन्युरसि मन्युं मयि धेहि “ यजु 19.9 को भूल कर मिथ्या  अहिंसावाद को मुख्य मानने लगे ।

परिणाम :- अशोक जैसा महान योद्धा का युद्ध न लड़ना । विदेशियों के द्वारा इसका फायदा उठा कर भारत पर आक्रमण करना आरम्भ हुवा ।

6.) छठी आज्ञा

मिथो विघ्राना उप यन्तु मृत्युम । ( अथर्व 6/32/3 )

अर्थात परस्पर लड़नेवाले मृत्यु का ग्रास बनते है और नष्ट भ्रष्ट हो जाते है ।

वेद की इस आज्ञा का उलंघन हुआ ।

परिणाम - भारत के योद्धा आपस में ही लड़ लड़ कर मर गये और विदेशियों ने इसका फायदा उठाया ।

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