Friday, April 15, 2016

गांधी का स्त्रैण दर्शन - रजनीश ओशो

आइये जानें की गाँधी के बारे में ओशो के क्या विचार थे।

"उस आदमी के हाथ में कुछ भी नहीं था - लेकिन सिर्फ उपवास से ......... उसने एक स्रैण चाल सीखी है। हाँ, मैं उसके पूरे दर्शन को स्रैण दर्शन कहता हूँ । "
महिलाएं ये काम हर दिन करती हैं । निश्चित ही गांधी ने इसे अपनी पत्नी से सीखा होगा । भारत में महिलाएं हर दिन ये काम करती हैं । पत्नी उपवास पर चली जाती है , वो खाना नहीं खाती है , जमीन पर पड़ जाती है । और ये सब देख कर आदमी कांपना शुरू हो जाता है। वो सही भी हो सकती हैं , लेकिन मुद्दा ये नहीं है.
अब सही है या गलत का कोई मतलब नहीं है; अब बात खाने के लिए उसे राजी करने के लिए है? वह नहीं खा रही है बच्चे भी नहीं खा रहे हैं – सबसे महत्वपूर्ण कि वो खाना भी नहीं पका रही है ? आदमी भी भूखा है ? और बच्चे रो रहे हैं, और वे खाना चाहते हैं, और पत्नी एक उपवास पर है - तो सही गलत का मुद्दा मायने नहीं रखता, - बस आप सहमत हैं।
पत्नी को नई साड़ी की जरूरत है, तो आप पहले उसे ला कर देते हैं तब वो रसोई में जाती है, यह भारत में सभी महिलाओं की एक पुरानी भारतीय रणनीति है।
गांधी ने अपनी पत्नी से यह सीखा है, और वह यह वास्तव में बहुत चालाकी से कर रहा है, .असल में ये आदमी खुद को यातना देने में सक्षम है और ये मानव मन का एक बेहद आश्चर्यजनक पहलु है कि वो ऐसे लोगों से प्रभावित होता है जो स्वम को कष्ट पहुचने में सक्ष्छ्म हो."

ओशो ( रजनीश )
From Personality to Individuality
Translate and re-posted by
*रानी चौधरी *

http://ranichoudhary.blogspot.in/2015/06/blog-post_14.html?m=1