Wednesday, August 16, 2017

क्या हम आज़ाद हैं

स्वतंत्र -
स्व मतलब अपना
तंत्र मतलब व्यवस्था

क्या देश मे हमारा अपना तंत्र है, अपनी व्यवस्था है?
क्या कानून हमारे अपने हैं, क्या संविधान हमारा अपना है, क्या शासन व्यवस्था अपनी है, क्या न्याय व्यवस्था अपनी है?
हमारे ज्यादातर कानून अंग्रेजों के बनाए हुए हैं..
आइए एक नज़र डालें 👇

*Indian Police Act 1861
(1857 जैसा विद्रोह फिर से ना हो, उसे कुचलने के लिए indian police act बनाया gya)

*Indian Penal Code 1860
*The Indian income tax Act 1860
(The Indian Income Tax Act of 1860 was enforced to meet the losses sustained by the government on account of the military mutiny of 1857.)

*Government of India Act 1935
(भारत के संविधान का अधिकतर हिस्सा Government of India Act 1935 से हो लिया gya है)

Indian trusts Act 1882
Land acquisition Act 1894
Sale of goods Act 1930
Transfer of Property Act 1882
Weekly Holidays Act 1942
Registration Act 1908
Indian Stamp Act 1899
Employer's Liability Act 1938
Employees compensation Act 1923
Religious Endowments Act 1863
Waste Lands (claim) Act 1863
Indian Tolls Act 1851
Power of Attorney Act 1882
Indian forest Act 1927
Central excise 1944

*Indian Arms Act 1878
(भारतीयों से हथियार रखने का अधिकार छीन लिया गया, इसी का नया रूप है Arms Act 1959)

अब जरा सोचिए कि हम कितने आज़ाद हैं.!!

Monday, June 5, 2017

गाँव vs शहर

*गांव vs शहर*
बड़ा घर आंगन वाला
छोटा फ्लैट जिसमे छत भी अपनी नही

बड़ा दिल सबसे मिल जुलकर रहना
Ego इतनी की पड़ोसी तक से जलन ईर्ष्या व बैर

स्वच्छ जल वायु भोजन (नजदीक के खेतों से या घर की बागवानी से)
जहरीले रसायनिक जल वायु व भोजन (दृर के गांवों से, महंगे दामो पर)

बड़ा परिवार मिल जुलकर रहते
छोटे nuclear फैमिली लड़ झगड़ कर रहते

जल्दी उठना जल्दी सोना सैर करना स्वस्थ रहना
देर से सोना देर से उठना, आलस में पड़े रहना व गोली खाकर जीते रहना

न मिला *स्वास्थ्य* शहर में उल्टा बिगड़ गया
न मिला सुख शांति *समृद्धि* बल्कि दुख stress ने घेर लिया
न मिला अपनो का प्रेम, *रिश्ते* भी टूटने लगे
समाज मे गांव में तो *इज्जत* भी थी, भागीदारी भी थी यहां तो सब मुंह पर कुछ और और पीठ पीछे कुछ और ही कहते हैं ।

*आखिर क्या है इस शहर में जो हर कोई गांव छोड़कर इधर चला आया*

जीवन के 4 उदेशय और 4 के 4 ही शहर में विफल। तो क्या गांव जीवन और शहर मृत्यु है ?

*गांव में जो कमियां थीं क्या वह दृर नही हो सकती ? हाँ सरल है ।*

*शहर में जो कमियां हैं क्या वह दृर हो सकती हैं ? नही बहुत कठिन है ।*
-नवनीत सिंघल

क्या आप भी बड़े वाले हैं???

*आज के पढ़े लिखे महान लोगों की सोच व समझ का दर्पण*

पढाई अच्छी हो या न हो स्कूल बड़ा होना चाहिए,

रिश्ता ठीक से निभे न निभे लेकिन उपहार बड़ा होना चाहिए,

चाहे कर्ज लेना पड़े पर घर, गाड़ी सब बड़ा होना चाहिए,

खाना ठीक हो या न हो लेकिन रेस्टोरेंट बड़ा होना चाहिए.

विवाह संस्कार ठीक से हो न हों पर शादी में टेंट और बजट बड़ा होना चाहिए.

खेती की जमीन हो या न हो लेकिन बड़े शहर में घर होना चाहिए ।

*छोटे गांव के बड़े घर को छोड़कर बड़े शहर के छोटे घर मे खुशी से रहते हैं क्योंकि बड़े लोग हैं न भाई*

और इन सबको बड़ा करने के चक्कर में जिन्दगी, ख़ुशी कहीं छोटे से कोने में दुबकी रहती है जो बाद या तो अस्पताल में बड़ी दिखती है या शमशान में .....

क्या आप भी बड़े वाले हैं ❓❓
Via- नवनीत सिंघल

भगतसिंह की फाँसी और गाँधी

किताबों को खंगालने से हमें यह पता चला कि ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय‘ के संस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय जी नें 14 फ़रवरी 1931 को लार्ड इरविन के सामने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी रोकने के लिए मर्सी पिटीसन दायर की थी ताकि उन्हें फांसी न दी जाये और कुछ सजा भी कम की जाएl लार्ड इरविन ने तब मालवीय जी से कहा कि आप कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष है इसलिए आपको इस पिटीसन के साथ नेहरु, गाँधी और कांग्रेस के कम से कम 20 अन्य सदस्यों के पत्र भी लाने होंगेl
जब मालवीय जी ने भगत सिंह की फांसी रुकवाने के बारे में नेहरु और गाँधी से बात की तो उन्होंने इस बात पर चुप्पी साध ली और अपनी सहमति नहीं दीl इसके अतिरिक्त गाँधी और नेहरु की असहमति के कारण ही कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी अपनी सहमति नहीं दीl रिटायर होने के बाद लार्ड इरविन ने स्वयं लन्दन में कहा था कि ”यदि नेहरु और गाँधी एक बार भी भगत सिंह की फांसी रुकवाने की अपील करते तो हम निश्चित ही उनकी फांसी रद्द कर देते, लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा महसूस हुआ कि गाँधी और नेहरु को इस बात की हमसे भी ज्यादा जल्दी थी कि भगत सिंह को फांसी दी जाएl”
प्रोफ़ेसर कपिल कुमार की किताब के अनुसार ”गाँधी और लार्ड इरविन के बीच जब समझौता हुआ उस समय इरविन इतना आश्चर्य में था कि गाँधी और नेहरु में से किसी ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को छोड़ने के बारे में चर्चा तक नहीं कीl” इरविन ने अपने दोस्तों से कहा कि ‘हम यह मानकर चल रहे थे कि गाँधी और नेहरु भगत सिंह की रिहाई के लिए अड़ जायेंगे और हम उनकी यह बात मान लेंगेl
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी लगाने की इतनी जल्दी तो अंग्रेजों को भी नही थी जितनी कि गाँधी और नेहरु को थी क्योंकि भगत सिंह तेजी से भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहे थे जो कि गाँधी और नेहरु को बिलकुल रास नहीं आ रहा थाl यही कारण था कि वो चाहते थे कि जल्द से जल्द भगत सिंह को फांसी दे दी जाये, यह बात स्वयं इरविन ने कही हैl इसके अतिरिक्त लाहौर जेल के जेलर ने स्वयं गाँधी को पत्र लिखकर पूछा था कि ‘इन लड़कों को फांसी देने से देश का माहौल तो नहीं बिगड़ेगा?‘ तब गाँधी ने उस पत्र का लिखित जवाब दिया था कि ‘आप अपना काम करें कुछ नहीं होगाl’ इस सब के बाद भी यादि कोई कांग्रेस को देशभक्त कहे तो निश्चित ही हमें उसपर गुस्सा भी आएगा और उसकी बुद्धिमत्ता पर रहम भी l

लाचार फौजी

(एक माँ कश्मीर मे पिटने वाले फौजी बेटे से)

फोन किया माँ ने बेटे को........तूने नाक कटाई है,
तेरी बहना से सब कहते .........बुजदिल तेरा भाई है!

ऐसी भी क्या मजबुरी थी........ऐसी क्या लाचारी थी,
कुछ कुत्तो की टोली कैसे........तुम शेरो पर भारी थी!
वीर शिवा के वंशज थे तुम......चाट क्यु ऐसे धुल गए,
हाथो मे हथियार तो थे.......क्यु उन्हें चलाना भूल गये!
गीदड़ बेटा पैदा कर के............मैने कोख लजाई है,
तेरी बहना से सब कहते .........बुजदिल तेरा भाई है!!
      
              (लाचार फौजी अपनी माँ से)

इतना भी कमजोर नही था.......माँ मेरी मजबुरी थी,
उपर से फरमान यही था.......चुप्पी बहुत जरूरी थी!
सरकारे ही पिटवाती है..........हमको इन गद्दारो से,
गोली का आदेश नही है.......दिल्ली के दरबारो से!
गिन-गिनकर मैं बदले लूँगा.....कसम ये मैंने खाई है,
तू गुड़िया से कह देना .... ना बुजदिल तेरा भाई है!!👇🏿

महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप के जीवन की कुछ रोचक बातें

महाराणा प्रताप को बचपन में 'कीका' नाम से जाना जाता था

 प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7 फीट 5 इंच थी.

3. प्रताप का भाला 81 किलो का और छाती का कवच का 72 किलो था. उनका भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन कुल मिलाकर 208 किलो था.

महाराणा प्रताप निहत्थे दुश्मन के लिए भी एक तलवार रखते थे

महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक हवा से बातें करता था,हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक हाथी के सिर पर पांव रखकर खड़ा हो गया था जिस पर से उतरते समय हाथी के सूंड पर बंधी तलवार से उसका एक पांव कट गया था वह अपनी एक टांग कटने पर भी महाराणा प्रताप को कई किलोमीटर लेकर दौड़ा था और 26 फीट चौड़े बरसाती नाले को लांघ गया था जहाँ वह मृत्यु को प्राप्त हुआ।

चेतक घोड़ा इतना विशाल और ऊंचा था कि उसके मुंह पर हाथी मुखौटा लगाया जाता था और देखने वह ऐसा लगता था कि जैसे कोई विशाल हाथी युद्धक्षेत्र में आ गया हो।

महाराणा प्रताप के पास 'चेतक' और 'हेतक' नाम के दो घोड़े थे।

जहाँ चेतक मरा वहां आज भी उसका मन्दिर है।

महाराणा प्रताप 20 साल जंगलों में केवल घास की रोटी खाकर जीवन गुजारे।

महाराणा प्रताप ने कसम खाई थी कि जब तक वह मेवाड़ को मुगलों से मुक्त नही करा देते तब तक वह पत्ते पर खाना खाऐंगे और घास पर सोऐंगे,आज भी राजस्थान के कई राजपूत खाना से पहले अपने थाली के नीचे एक पत्तल लगा देते है और सोने से पहले अपने बिस्तर के नीचे घास रखते हैं।

हल्दीघाटी के युद्ध में भीलों ने महाराणा प्रताप की तरफ से भीषण युद्ध किया था।वह महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे,आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ भील है और एक तरफ राजपूत।

हल्दीघाटी के युद्ध के 300 साल बीतने पर आज भी वहां के मैदानों में तलवारें पाई जाती हैं।

हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से 20000 और अकबर की तरफ से 85000 सैनिक लड़े थे,तब भी वह महाराणा प्रताप को पराजित न कर पाये।

महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़ा समेत दुश्मन सैनिकों को काट डालते थे।

महाराणा प्रताप ने जब महलों का परित्याग किया तब लोहार जाति के हजारों लोगों ने भी अपना घर छोड़कर महाराणा प्रताप के साथ जंगलों में चले गये थे और महाराणा के सैनिकों के लिए दिन रात एक कर तलवारें बनाते थे।

महाराणा ने मरने से पूर्व 85% मेवाड़ वापस जीत लिया था।

महाराणा प्रताप के अस्त्र शस्त्र आज भी उदयपुर राजघराने में सुरक्षित है।

महाराणा प्रताप के वंश को एकलिंग महादेव का दीवान माना जाता है।

Monday, April 17, 2017

🕉ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल तारणा के अधिकारी !!

🕉ढोल गंवार शुद्र पशु नारी,
सकल तारणा के अधिकारी !!
*(कृपया पढ़ें जरूर, इसका अर्थ क्या है ??)*

🏵 *१. ढोल (वाद्य यंत्र)*- ढोल को हमारे सनातन संस्कृति में उत्साह का प्रतीक माना गया है इसके थाप से हमें नयी ऊर्जा मिलती है. इससे जीवन स्फूर्तिमय, उत्साहमय हो जाता है. आज भी विभिन्न अवसरों पर ढोलक बजाया जाता है. इसे शुभ माना जाता है.

👳 *२. गंवार {गाँव के रहने वाले लोग )*- गाँव के लोग छल-प्रपंच से दूर अत्यंत ही सरल स्वभाव के होते हैं. गाँव के लोग अत्यधिक परिश्रमी होते है जो अपने परिश्रम से धरती माता की कोख अन्न इत्यादि पैदा कर संसार में सबका भूख मिटाते हैं. आदि-अनादि काल से ही अनेकों देवी-देवता और संत महर्षि गण गाँव में ही उत्पन्न होते रहे हैं. सरलता में ही ईश्वर का वास होता है.

💂 *३. शुद्र (जो अपने कर्म व सेवाभाव से इस लोक की दरिद्रता को दूर करे)*- सेवा व कर्म से ही हमारे जीवन व दूसरों के जीवन का भी उद्धार होता है और जो इस सेवा व कर्म भाव से लोक का कल्याण करे वही ईश्वर का प्रिय पात्र होता है. कर्म ही पूजा है.

🐄 *४. पशु  (जो एक निश्चित पाश में रहकर हमारे लिए उपयोगी हो)* - प्राचीन काल और आज भी हम अपने दैनिक जीवन में भी पशुओं से उपकृत होते रहे हैं. पहले तो वाहन और कृषि कार्य में भी पशुओं का उपयोग किया जाता था. आज भी हम दूध, दही. घी विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न इत्यादि के लिए हम पशुओं पर ही निर्भर हैं. पशुओं के बिना हमारे जीवन का कोई औचित्य ही नहीं. वर्षों पहले जिसके पास जितना पशु होता था उसे उतना ही समृद्ध माना जाता था. सनातन धर्म में पशुओं को प्रतीक मानकर पूजा जाता है.

👰 *५. नारी ( जगत -जननी, आदि-शक्ति, मातृ-शक्ति )*- नारी के बिना इस चराचर जगत की कल्पना ही मिथ्या है नारी का हमारे जीवन में माँ, बहन बेटी इत्यादि के रूप में बहुत बड़ा योगदान है. नारी के ममत्व से ही हम हम अपने जीवन को भली-भाँती सुगमता से व्यतीत कर पाते हैं. विशेष परिस्थिति में नारी पुरुष जैसा कठिन कार्य भी करने से पीछे नहीं हटती है.

👏; *जब जब हमारे ऊपर घोर विपत्तियाँ आती है तो नारी दुर्गा, काली, लक्ष्मीबाई बनकर हमारा कल्याण करती है. इसलिए सनातन संस्कृति में नारी को पुरुषों से अधिक महत्त्व प्राप्त है.*

✍ *सकल तारणा के अधिकारी*
इससे यह तात्पर्य है :-
*१. सकल=  सबका*
*२. तारणा= उद्धार करना*
*३. अधिकारी = अधिकार रखना*
उपरोक्त सभी के द्वारा हमारे जीवन का उद्धार होता है इसलिए इसे उद्धार करने का अधिकारी कहा गया है.

😜अब यदि कोई व्यक्ति या समुदाय विधर्मियों या पाखंडियों के कहने पर अपने ही सनातन को माध्यम बनाकर. उसे गलत बताकर अपना स्वार्थ सिद्ध करता है तो ऐसे विकृत मानसिकता वालों को भगवान् सद्बुद्धि दे, तथा सनातन पर चलने की प्ररेणा दे।

😳 *ज्ञात रहे सनातन धर्म सबके लिए कल्याणकारी था कल्याणकारी है और सदा कल्याणकारी ही रहेगा. सनातन सरल है इसे सरलता से समझे कुतर्क पर न चले. अपने पूर्वजों पर सदेह करना महापाप है.*

📙इसलिए जो भी रामचरितमानस सुन्दरकाण्ड के चौपाई का अर्थ गलत समझाए तो उसे इसका अर्थ जरूर समझाए और अपने धर्म की रक्षा करे.........
*सर्वे भवन्तु सुखिनः*
*सर्वे संतु निरामया:*
*सर्वे भद्राणि पश्यन्तु*
*माँ कश्चित् दुःख भाग भवेत्*

⛳यह इसका तात्विक अर्थ है...

हे ईश सब सुखी हों
कोई नाहो दुःखहारी
सब हों निरोगी भगवन्
धन धान्य के भंडारी

सब भद्र (अच्छा) भाव देखें
सन्मार्ग के पथिक हों
दुखिया ना कोई होवे
सृष्टि में प्राण(जीवन)धारी !!

Sunday, February 19, 2017

उर्दू शब्दों को त्याग कर हिन्दी के शब्द अपनाएँ

कृपया उर्दू शब्दों को त्यागकर संस्कृत और हिंदी शब्दों का प्रयोग करे...

ये हैं वो उर्दू के शब्द जो आप प्रतिदिन प्रयोग करते हैं, इन शब्दों को त्याग कर मातृभाषा का प्रयोग करें:-
ईमानदार – निष्ठावान
इंतजार – प्रतीक्षा
इत्तेफाक – संयोग
सिर्फ – केवल
शहीद – बलिदान
यकीन – विश्वास, भरोसा
इस्तकबाल – स्वागत
इस्तेमाल – उपयोग, प्रयोग
किताब – पुस्तक
मुल्क – देश
कर्ज – ऋण
तारीफ – प्रशंसा
इल्ज़ाम – आरोप
गुनाह – अपराध
शुक्रिया – धन्यवाद
सलाम – नमस्कार
मशहूर – प्रसिद्ध
अगर – यदि
ऐतराज – आपत्ति
सियासत – राजनीति
इंतकाम – प्रतिशोध
इज्जत – सम्मान
इलाका – क्षेत्र
एहसान – आभार, उपकार
अहसानफरामोश – कृतघ्न
मसला – समस्या
इश्तेहार – विज्ञापन
इम्तेहान – परीक्षा
कुबूल – स्वीकार
मजबूर – विवश, लाचार
मंजूरी – स्वीकृति
इंतकाल – मृत्यु
बेइज्जती – तिरस्कार
दस्तखत – हस्ताक्षर
हैरान – आश्चर्य
कोशिश – प्रयास, चेष्टा
किस्मत – भाग्य
फैसला – निर्णय
हक – अधिकार
मुमकिन – संभव
फर्ज – कर्तव्य
उम्र – आयु
साल – वर्ष
शर्म – लज्जा
सवाल – प्रश्न
जबाब – उत्तर
जिम्मेदार – उत्तरदायी
फतह – विजय
धोखा – छल
काबिल – योग्य
करीब – समीप, निकट
जिंदगी – जीवन
हकीकत – सत्य
झूठ – मिथ्या
जल्दी – शीघ्र
इनाम – पुरस्कार
तोहफा – उपहार
इलाज – उपचार
हुक्म – आदेश
शक – संदेह
ख्वाब – स्वप्न
तब्दील – परिवर्तित
कसूर – दोष
बेकसूर – निर्दोष
कामयाब – सफल
गुलाम – दास

और भी अन्य सैंकड़ों उर्दू के शब्द जो हम प्रयोग
में लेते हैं। जांच करें कि आप कितने उर्दू के शब्द बोलते है।

हिन्दी बोलने व लिखने का प्रयास करे धन्यवाद ।
🚩🚩🚩🚩🚩

Friday, February 10, 2017

अंग्रेजी भाषा की दरिद्रता

"अंग्रेजी" भाषा का सच यह है

अँग्रेज़ी भाषा एक दम रद्दी है, इस भाषा का जब मैने इतिहास पढ़ा तो पता चला की पाँचवी शताब्दी में तो ये भाषा आई इसका मतलब है कि मुश्किल से 1500 साल पुरानी है l

हमारी भाषा तो करोड़ों वर्ष पुरानी है संस्कृत, हिन्दी, मराठी, कन्नड़, मलयालम। अंग्रेजी दुनिया की सबसे रद्दी भाषा है, इसकी कोई अपनी व्याकरण नहीं  है जो सूद्ढ़ हो और अपनी हो।

आपको एक उदाहरण देता हूँ. अँग्रेज़ी में एक शब्द है “PUT” इसका उच्चारण होता है पुट दूसरा शब्द है “BUT” इसका उच्चारण है बट इसी तरह “CUT ” को कट बोला जाता है जबकि तीनों शब्द एक समान हैं. इसकी बजह है भाषा के व्याकरण का ना होना. इसी तरह कभी “CH” का उच्चारण “का” होता है तो कभी “च”  कोई नियम नहीं है l इस भाषा की कितनी बड़ी कमज़ोरी है।

अँग्रेज़ी में एक शब्द होता है “SUN” जिसका मतलब होता है सूरज l मै सारे काले अँग्रेज़ों को चुनौती देता हूँ कि सूरज का दूसरा शब्द अँग्रेज़ी में से ढूँढ कर दिखाए यानी की “SUN” का पर्यायवाची; पूरी अँग्रेज़ी में दूसरा शब्द नही है जो सूरज को बता सके l अब हम संस्कृत की बात करें  “सूर्य” एक शब्द  है इसके अलावा दिनकर , दिवाकर, भास्कर 84 शब्द हैं संकृत में।

अंग्रेजी का एक शब्द हैं “MOON” इसके अलावा कोई शब्द नहीं  है; संस्कृत में 56 शब्द है चाँद के लिये l इसी तरह पानी के लिए भी जहाँ अँग्रेज़ी में एक शब्द  है “WATER” चाहे वो नदी का हो, नाले का या कुए का. संस्कृत में हर पानी के लिए अलग- अलग शब्द है, सागर के पानी से लेकर कीचड़ के पानी तक सभी के लिए अलग- अलग शब्द है।
अंग्रेजी कितनी ग़रीब भाषा है, शब्द ही नही है. चाचा भी “अंकल” मौसा भी “अंकल” फूफा भी “अंकल” और फूफा का फूफा भी “अंकल” और मौसा का मौसा भी “अंकल” कोई शब्द ही नहीँ है अंकल के अलावा इसी तरह चाची, मामी, मौसी सभी के लिए “आंटी”
कोई शब्द ही नहीँ है इसके अलावा।

हम तो मूर्ख हैं जो इस अँग्रेज़ी के चक्कर में फस गये। अकल नहीं है, अकल उन्ही की मारी गयी है जो अँग्रेज़ी सीख गये हैं l जिन्होने नहीं  सीखी वो बहुत होशियार है l कभी- कभी में अँग्रेज़ी पढ़ें लिखे घरों में भी जाता हूँ l वे अँग्रेज़ी की बजह से मुझे कैसे मूर्ख दिखाई देते हैं उसका उदाहरण देता हूँ l वो ना तो अंग्रेज हैं और ना हिन्दुस्तानी है बीच की खिचड़ी हैं l वो खिचड़ी कैसी हैं; एक परिवार में गया, पिताजी का नाम रामदयाल, माताजी का नाम गायत्री देवी, बेटे का नाम “टिन्कू”। रामदयाल और गायत्री देवी का ये टिन्कू कहा से आ गया l जब में उन से पूछता हूँ कि आपको टिंकू का मतलब पता है तो उनको नहीं पता होता है l

ऐसे मूर्ख लोग है अर्थ मालूम नही नाम रख लिया टिंकू l फिर में उनको अँग्रेज़ी शब्द कोष दिखता हूँ, अँग्रेज़ी की सबसे पुराना शब्द कोष है वेबस्टेर;  जिसमें टिन्कू का अर्थ है “आवारा लड़का”l जो लड़का माँ बाप की ना सुने वो टिंकू और हम पढ़े लिखे मूर्ख लोग क्या कर रहें है, अच्छे ख़ासे आज्ञाकारी पुत्र को आवारा बनाने में लगे हैं इस अग्रेज़ी के चक्कर में।
अंगेजी पढ़े लिखे घरों में डिंपल, बबली, डब्ली, पपपी, बबलू, डब्लू जैसे बेतुके और अर्थहीन नाम ही मिलते हैं l भारत में नामों की कमी हो गई है क्या?

कभी कभी में इससे भी बड़ी मूर्खताएँ मैं देखता हूँ l कभी किसी अधकचरे हिन्दुस्तानी के घर में जाऊं तो रोब झाड़ने के लिए अँग्रेज़ी बोलते हैं चाहे ग़लत ही क्यों ना हो l वह चाहे तो हिन्दी में भी बोल सकता है लेकिन रोब झाड़ने के लिए अँग्रेज़ी मैं ही बोलेगा। वो बोलेगा “ओ श्रवण कुमार  she is my misses ” तो मैं पूछता हूँ ” really” ! she is your misses ?”

क्योंकि उसको “मिसेज़” का अर्थ नहीं  मालूम।“मिसेज” का अर्थ क्या है? किसी भी सभ्यता में जो शब्द निकलते उनका अपना सामाजिक इतिहास और अर्थ होता है । इंगलेंड की सभ्यता का सबसे ख़राब पहलू ये है जो आपको कभी पसंद नहीं आएगी कि वहाँ एक पुरुष और एक स्त्री जीवन भर साथ कभी नहीं रहते; बदलते रहते है कपड़ों की तरह. मेने कई  लेखों में  पडा है इंग्लेंड और यूरोप में है उनकी 40 -40 शादियाँ हो चुकी और और 41वी करने को तैयारी है ।एक पुरुष कई स्त्रियों से संबंध रखता है एक स्त्री कई पुरुषों से संबंध रखती है। तो पत्नी को छोड़ कर पुरुष जितनी भी स्त्रियों से संबंध रखता है वो सब “मिसेज़” कहलाती है। इसका मतलब हुआ कोई भी महिला जिसके साथ आप रात को सोएं। अब यहाँ धर्म पत्नी को मिसेज़ बनाने में लगे हैं; मूर्खों के मूर्ख।

“मिस्टर” का मतलब उल्टा, पति को छोड़ कर पुरुष जिसके साथ आप रात बिताएँ। छोड़िए इन अँग्रेज़ी शब्दों को इनमें कोई दम नही है ।एक तो सबसे खराब अँग्रेज़ी का शब्द है “मेडम” पता नहीं  है लोग बोलते कैसे है । आप जानते है यूरोप में मेडम कौन होती है ।ऐसी सभ्यता जहाँ परस्त्री गमन होगा वहां वेश्यावृति भी होगी ।परस्त्री गमन पर पुरुष गमन चरम पर होगा ।तो वैश्याएँ जो अपने कोठों को चल़ाती हैं अपनी वेश्यावृती के धंधे को चलाने के लिए ।वैश्या प्रमुख को वहां मैडम कहा जात है ।हमारे यहाँ ऐसे मूर्ख लोग हैं जो अपनी बहिनों को मैडम कहते है, अपनी पत्नि को मैडम कहते है ।और पत्नि को भी शर्म नहीं आती मैडम कलवाने में वो भी कहती हैं मैडम कहो मुझको । पहले जान तो लो इसका मतलब फिर कहलाओ।

अपने भारत में कितने सुंदर सुंदर शब्द हैं जैसे  “श्रीमती” श्री यानी लक्ष्मी मति यानी बिद्धि जिसमें लक्ष्मी और सरस्वती एक साथ निवास करें वो श्रीमती उसको हमने मिसेज़ बना दिया । इस देश का सत्यानाश किया अँग्रेज़ी पढ़े लिखे लोगों ने; पहले तो अँग्रेज़ी भाषा ने किया फिर इन्होने और ज़्यादा किया ।मेरा आपसे हाथ जोड़ के निवेदन है इस अँग्रेज़ी भाषा के चक्कर में मत पड़िये कुछ रखा नहीं है इसमें।

विश्व के सबसे ताकतवर देश  चीन और जापान...अमेरिका..इंग्लेंड..ये सिर्फ अपनी भाषा बोलते है..बिज़्नेस भी अपनी भाषा मे ही करते है
क्योंकि बहा का आम नागरिक समर्पित है ।पर हमारे यहाँ इस तरीके के लोग है जो इस तरह की बात सुनकर तुरंत अपने पिछवाडे मे आग लगाकर घूमने लगते है ।
मै सिर्फ यही कहूँगा इस तरह के लोगो को
जो अपनी हिन्दी को छोड़कर अँग्रेजी की प्रशंसा करते है वो लोग अपनी माँ को माँ बोलना भूलकर किसी  वैश्या को माँ बोलने मे गर्व महसूस करते हैl

मृत्युभोज

मृत्युभोज से ऊर्जा नष्ट होती है
महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि .....
मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
जिस परिवार में मृत्यु जैसी विपदा आई हो उसके साथ इस संकट की घड़ी में जरूर खडे़ हों
और तन, मन, धन से सहयोग करें
लेकिन......बारहवीं या तेरहवीं पर मृतक भोज का पुरजोर बहिष्कार करें।
महाभारत का युद्ध होने को था,
अतः श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जा कर युद्ध न करने के लिए संधि करने का आग्रह किया ।
दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराए जाने पर श्री कृष्ण को कष्ट हुआ और वह चल पड़े,
तो दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर कृष्ण ने कहा कि
>
’’सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’’
अर्थात्
"जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो,
तभी भोजन करना चाहिए।
>
लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के दिल में दर्द हो, वेदना हो,
तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए।"
>
हिन्दू धर्म में मुख्य 16 संस्कार बनाए गए है,
जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अन्तिम तथा 16वाँ संस्कार अन्त्येष्टि है।
इस प्रकार जब सत्रहवाँ संस्कार बनाया ही नहीं गया
तो सत्रहवाँ संस्कार
'तेरहवीं का भोज'
कहाँ से आ टपका।
किसी भी धर्म ग्रन्थ में मृत्युभोज का विधान नहीं है।
बल्कि महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
लेकिन हमारे समाज का तो ईश्वर ही मालिक है।
इसीलिए
महर्षि दयानन्द सरस्वती,
पं0 श्रीराम शर्मा,
स्वामी विवेकानन्द
जैसे महान मनीषियों ने मृत्युभोज का जोरदार ढंग से विरोध किया है।
जिस भोजन बनाने का कृत्य....
रो रोकर हो रहा हो....
जैसे लकड़ी फाड़ी जाती तो रोकर....
आटा गूँथा जाता तो रोकर....
एवं पूड़ी बनाई जाती है तो रो रोकर....
यानि हर कृत्य आँसुओं से भीगा हुआ।
ऐसे आँसुओं से भीगे निकृष्ट भोजन
अर्थात बारहवीं एवं तेरहवीं के भोज का पूर्ण रूपेण बहिष्कार कर समाज को एक सही दिशा दें।
जानवरों से भी सीखें,
जिसका साथी बिछुड़ जाने पर वह उस दिन चारा नहीं खाता है।
जबकि 84 लाख योनियों में श्रेष्ठ मानव,
जवान आदमी की मृत्यु पर
हलुवा पूड़ी पकवान खाकर शोक मनाने का ढ़ोंग रचता है।
इससे बढ़कर निन्दनीय कोई दूसरा कृत्य हो नहीं सकता।
यदि आप इस बात से
सहमत हों, तो
आप आज से संकल्प लें कि आप किसी के मृत्यु भोज को ग्रहण नहीं करेंगे और मृत्युभोज प्रथा को रोकने का हर संभव प्रयास करेंगे
हमारे इस प्रयास से यह कुप्रथा धीरे धीरे एक दिन अवश्य ही पूर्णत: बंद हो जायेगी